बरसी थी घनघोर झमाझम, बस थोड़ी ही देर को,
भीगे हम भी जा बारिश में, बस थोड़ी ही देर को।
नहीं बुझी प्यास धरा की, जितना बरसा बह गया,
मौसम भी तो हुआ सुहाना, बस थोड़ी ही देर को।
लगती नहीं झड़ी बारिश की, कुदरत के खेल निराले,
निज स्वार्थ में बंजर धरती, और पर्वत नंगे कर डाले।
प्रदूषण फैलाकर मानव ने, जल थल दूषित कर डाला,
धरती पर्वत खोद दिए सब, थे पर्यावरण के रखवाले।
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