हिन्दू नारी
किसी भी अन्य धर्म की महिला ने अपने संस्कार, सभ्यता अथवा संस्कृति को न तो त्यागा और न ही समझौता किया। क्योंकि नारी ही इन सबकी पोषक है, वह राष्ट्र निर्माता हैं। अपने बच्चों तथा परिवार की रीढ़ की हड्डी होती है। भविष्य निर्माता है। नारी के सभी प्रतीक चिन्ह केवल फैशन या रूढ़ीवादिता नहीं है अपितु यह सब विज्ञान की कसौटी पर खरे परखें हैं।हिन्दू नारी
छोडकर संस्कार संस्कृति, वह आधुनिक बन गयी,
त्याग दी माथे की बिन्दी, अब कुमारी सी बन गयी|
दिखने लगी विधवा के माफिक, तज दिया सिन्दूर को,
सूनी माँग लिये घूमती, वह अभागिन सी बन गयी|
पालती थी बच्चों को जो, निज ममता का दूध पिला,
नग्नता का पर्याय इस दौर में, हिन्दू नारी बन गयी|
न कहीं आँचल बचा है, न दुपट्टा दिखता शीश पर,
आँचल की छाँव बच्चे सुलाती, झूठी कहानी बन गयी।
लाज और शर्म के गहने, शोभा थी जिसके तन मन की,
शर्मो हया गायब हुये सब, वह बेहया सी बन गयी।
अ कीर्ति वर्धन
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