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सर्व धर्म सम भाव का वर्तमान राजनीति में जो प्रयोग होता है, वह संविधान विरोधी, सत्य विरोधी, राष्ट्र विरोधी और धर्म विरोधी है।।:-प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज

सर्व धर्म सम भाव का वर्तमान राजनीति में जो प्रयोग होता है, वह संविधान विरोधी, सत्य विरोधी, राष्ट्र विरोधी और धर्म विरोधी है।।:-प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज


हिंदू धर्म ,ईसाइयत और इस्लाम ,यह सब एक समान है, यह भारत के संविधान में कहीं भी नहीं लिखा हुआ है।

सर्वधर्म समभाव जैसा कोई भी शब्द संविधान में नहीं है।

संविधान में सचमुच क्या लिखा है इसे जाने ।

मीडिया में किसी मूर्ख द्वारा क्या कह दिया जाता है अथवा मुसलमानों ईसाइयों के अंधे पक्षधर लोगों द्वारा क्या कह दिया जाता है ,इससे आप प्रभावित नहीं हों। संविधान में सचमुच क्या लिखा है, यह जाने।

तत्वतः ये सब समान हैं, यह कहा ही नहीं जा सकता।प्रथम दृष्टि में ऐसा हो पाना असंभव दिखता है क्यों कि न तो कभी अंग्रेजी राज में ऐसी कोई विचित्र बात कही गई,ना उससे पहले जब देश के कई हिस्सों में मुसलमानों का शासन था, तो भी कभी भी ऐसी कोई बात हो पाई कि इस्लाम और हिंदू धर्म बराबर है या ईसाइयत और हिन्दू धर्म बराबर हैं।ईसाइयों ने अवश्य ऐसे कथन छल कपट पूर्वक कहे पर उनका आचरण इसके विपरीत था और हिन्दुओं ने कभी यह माना नहीं।उन्हें अपवित्र और छली ही मानते रहे।फिरंग रोग की उनमें व्याप्ति से वे संसर्ग के अपात्र माने जाते रहे।निरन्तर।

मुसलमानों को तो मंदिर ध्वंस आदि पैशाचिक पापों के लिए हिन्दू उन्हें तिरस्कार से म्लेच्छ ही कहते रहे।क्योंकि बोले गए विचार नहीं,आचरण में व्यक्त विचार ही हिन्दू दृष्टि से सदा प्रधान मान्य रहा है ।

कभी किसी एक भी व्यक्ति ने ऐसी विचित्र बात कभी भी नहीं कहीं कि सनातन धर्म और म्लेच्छ धर्म या फिरंग पंथ समान हैं ।कोई कहता तो उसे पागल ही माना जाता।

फिर स्वतंत्र भारत में,जब यहां के बहुसंख्यक हिंदू हैं,तो ऐसा भयंकर पाप कैसे संभव हुआ?

इसका कारण बहुत स्पष्टहै।।

श्री जवाहरलाल नेहरू और उनकी पार्टी ने जानबूझकर हिंदुओं के भीतर योजना पूर्वक इन विषयों में अज्ञान और झूठ फैलाया और धोखाधड़ी की।

यह सब पाप हिंदुओं की उदात्त भावनाओं का शोषण करते हुए,उनकी उदारता का दुरुपयोग करते हुए और उन्हें धोखे में रखते हुए छल पूर्वक किया गया ।

हिंदुओं से कहा गया कि तुम्हारा दिल तो बहुत उदार और महान है। तुम बहुत उदार हो और क्षमाशील हो ।

सहनशील हो।

इसलिए क्या फर्क पड़ता है कि कोई तुम्हारे धर्म का विरोधी है या दुश्मन है।

तुम तो भगवान में श्रद्धा रखो। तुम्हारा धर्म कभी नष्ट नहीं हो सकता और यह लोग भले ही कहते हैं कि तुम्हारे धर्म को नष्ट करेंगे ,पर अब शासन तुम्हारा है।

इसलिए बेफिक्र रहो और इनको भी शासन का संरक्षण लेने दो क्योंकि इससे यह राष्ट्र बहुत बड़ा बना रहेगा और अंत में तो संपूर्ण राष्ट्र में हिंदू धर्म के प्रसार और भारतीय संस्कृति के प्रसार के अवसर मिलेंगे।

ये हिंदू धर्म को नष्ट करने की बातें करते हैं और कोशिश करते हैं लेकिन तुम्हारा क्या बिगाड़ लेंगे?

तुम तो महासागर हो।ये क्षुद्र नाले तुम्हारा क्या बिगाड़ लेंगे?

स्पष्ट है कि यह छल था और यह हिन्दुओं के साथ जानबूझकर छल कपट करते हुए राजनीतिक दल द्वारा सप्रयोजन किया जा रहा है क्योंकि इन लोगों को जो सार्वजनिक रूप से घोषणा करते हैं कि हम संपूर्ण भारत को ईसाई बनाएंगे या मुसलमान बनाएंगे ,,उन्हें हिंदुओं के टैक्स से भी पोषित सरकारी खजाने से विशेष धन इन बातों के प्रसार के लिए दिया जाता रहा कि तुम इस्लाम और ईसाइयत का प्रचार करो और अपने द्वारा शिक्षित लोगों में यह भाव भरो कि वह 1 दिन समस्त हिंदुस्तान को मुसलमान या ईसाई बना ही लेंगे।

स्पष्ट रूप से यह हिन्दुओं के साथ छल किया गया और यह झूठ बोल कर के धोखे में रखकर बुरी नीयत से किया गया ।

तब जो हिंदू संगठन थे, वह क्या कर रहे थे ?

स्पष्ट है कि वह कसमसा रहे थे और अपने स्तर पर विरोध कर रहे थे ।

परंतु इसके लिए उच्च शिक्षा के स्तर पर जो झूठ फैलाया जा रहा था ,,उसकी काट के लिए विद्या केंद्र आवश्यक है क्योंकि भारत में कम्युनिस्ट शासन नहीं था।

शिक्षा में बहुत अधिक अवसर था कि आप सत्य बताते लेकिन हिंदू संगठन स्वयं इन लोगों के द्वारा फैलाई गई शिक्षा में उनके शिक्षा केंद्रों में अपने बच्चों को भेजकर उसकी ही चपेट में आते चले गए ।।

इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि स्वयं भारतीय जनता पार्टी जैसे दलों के नेताओं की बातों में ठीक वैसी बातें हमें सुनाई पड़ती है जो कि कांग्रेस के लोग अब तक करते रहे हैं और स्कूलों कालेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाते रहेंहैं।

हिंदू संगठनों का सारा ही प्रयास निरर्थक है इस विषय में।जब तक ज्ञान की साधना नहीं की जाए।

जब तक कि विद्या का प्रसारण और विद्या के प्रसार के लिए उच्च स्तर की राजनीतिक सामाजिक और धर्म शास्त्रीय चेतना के प्रसार के लिए संगठन कुछ नहीं करते।

परिणाम यह हुआ है कि न केवल शेष समाज में बल्कि स्वयं संगठनों के सदस्यों के घरों में सब बच्चों में ठीक वही भाव बढ़ गए जो कि कांग्रेस ने अपने शासन के द्वारा स्कूलों कालेजों में फैलाए थे।

इन संगठनों ने कभी यह कहा ही नहीं कि भारत में जो शासन है उसका हिंदू धर्म के प्रति भी कुछ कर्तव्य है और शासन को हिंदू धर्म को भी कम से कम इतना संरक्षण देना चाहिए ही जितने कि वह अल्पसंख्यकों के मजहब और रिलीजन को दे रहा है ।

यह माँग ही नहीं की गई और संगठनों ने यह अध्ययन भी कभी नहीं किया कि दुनिया के लगभग सभी देशों में बहुसंख्यकों के धर्म को उनके राज्य का विशेष संरक्षण प्राप्त है और उनकी ज्ञान तथा विधि और न्याय परंपरा के अनुसार ही व्यवस्था की जाती है ।

स्वयं को हिंदुत्व के प्रति समर्पित मान रहे समूहों में इस विषय का कोई ज्ञान ही नहीं है । क्योंकि वैसे हर वक्त वे काम करते देखे जाते हैं ,तप करते देखे जाते हैं,कष्ट सहते देखे जाते हैं।अतः उनकी निष्ठा असंदिग्ध है।

परंतु जब राजनीति प्रधान वातावरण बना हुआ है और आपने उस राज्य से भिन्न किसी संस्था को सशक्त बनाने का कोई प्रयास किया ही नहीं है तो फिर राज्य से हिन्दुओं के लिए न्याय की मांग तो आपका कर्तव्य ही है।

आश्चर्य तब होता है जब दुष्ट लफंगे संचार माध्यमों और शिक्षा संस्थानों में प्रभावी हो गए दिखते हैं और वे हमें यह बताते हैं कि संविधान में सर्वधर्म समभाव लिखा है और हम देखते हैं कि यह बेचारे हिंदू संगठन के लोग भी उसको मान लेते हैं ।

भाई जी ,,संविधान में तो सर्वधर्म समभाव जैसा कोई शब्द है ही नहीं। एक ओर अहिंसा धर्म को और दूसरी ओर,अन्य से घृणा करते हुए उनके विनाश को कर्तव्य बताने वाले पंथ को ,संविधान कभी समान नहीं कहता ।

सभी नागरिकों को राज्य समान अधिकार और समान अवसर देगा यदि वे अपेक्षित योग्यता पूरी करते हैं और कानून के अनुसार चलते हैं ,यह संविधान ने कहा है।

ऐसे अवसर देते समय जाति या रिलीजन या मजहब या लिंग या कहां जन्म हुआ है देश के भीतर, ऐसे स्थान आदि का कोई विचार नहीं किया जाएगा ।।

बस ।

इतनी सी बात में सर्वधर्म समभाव कहां से आ जाता है? सर्वधर्म समभाव का यह अर्थ कहां से होता है ?

अहिंसा, सत्य,उदारता और सब में निवास करने वाले भगवान की बात एक करेगा और दूसरा यह बात करेगा कि हमारे सिवाय और सभी भगवान झूठे हैं और सभी लोग झूठे हैं और बहुसंख्यक का धर्म झूठा है और हम उनको मारेंगे।।दोनों को एक कौन कहेगा?संविधान तो दोनों को एकनहीं कहता।

संविधान तो ऐसा भाव रखने वालों को हिंसक अपराधी कहता है।

संविधान प्रशासन को निर्देश देता है कि जो भी किसी अन्य समूह की ,समाज की उपासना के प्रति ,,उसके आराध्य देवों के प्रति ,,उसके धर्म और संस्कृति के प्रति अपमान सूचक और निन्दा करने वाले शब्द बोले,, उसे दंडित करें।वह समाज में उत्तेजना फैलाने और लोकशान्ति को प्रक्षुब्ध करने वाला अपराधी है।वह संज्ञेय अपराध कर रहा है। उसे आगे बढ़कर गिरफ्तार करना और दंडित करना पुलिस और प्रशासन का कर्तव्य है और शासन का कर्तव्य है कि वह इस प्रकार लोकशान्ति को प्रक्षुब्ध नहीं होने दे ,लोक शान्ति भंग नहीं होने दे और बहुसंख्यकों को उत्तेजित करने वाले झूठे कथन कहीं भी नहीं होने दे।

पर दुष्ट लोगों ने फैला दिया कि हिंदू धर्म को इस्लाम और ईसाइयत के समकक्ष मानना संविधान में लिखा हुआ है। और इतनी झूठी बात को अपने को हिंदुओं का हितैषी मानने वाले लोग सत्य माने बैठे हैं ।

संविधान में तो यही लिखा है कि सबके लिए समान नियम हैं।दूसरों की निन्दा का किसी को अधिकार नहीं।आदि ।

प्रश्न यह है कि हिंदू समाज जैसे विशाल और विराट समाज जो यूरोप के 37 राष्ट्रों के बराबर का समाज है और मुसलमानों के तो 50 राष्ट्रों के बराबर का समाजहै, उस विशाल समाज का हित चाहने वाले संगठन अपना संविधान तक पढ़ने का समय क्यों नहीं निकाल पाते और केवल न्यूज़ चैनलों और उसमें बकी जा रही निस्सार और निरर्थक बकबक के आधार पर अपना मत क्यों बनाते हैं ?

उनमें इतनी हीनता कब से आ गई ?

और अगर इतनी हीनता आ गई है तो वह पहले अपना भीतरी संगठन और अपना व्यक्तित्व ठीक करें।

हिंदू समाज की चिंता तो छोड़ ही दें।

संविधान के विषय तक में सामान्य बातें जो लोग नहीं जानते, जो लोग मूर्खों की तरह इस पर बहस करते रहे कि गांधीजी राष्ट्रपिता हैं या नहीं, या गांधी जी ने देश का सर्वनाश कर दिया था और नेहरू ने नहीं किया था या भारत में केवल जनता का ही राज है और शासकों ने जितने पाप किए हैं उसके लिए भारत के लोग जिम्मेदार हैं और जो मूर्ख यह कहते हैं कि संविधान हिंसाप्रधान कार्यों और अहिंसक शक्तियों को एक समान मानता है और सर्वधर्म समभाव का कहीं कोई ऐसा प्रावधान है कि इसमें उदात्त चरित्र वाले समूह और हिंसक चरित्र को एक समान माना गया है, ऐसा कहने वाले लोग किसी भी समाज का भला क्या हित करेंगे?
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