बूढ़े और बच्चे
कितने बूढ़े आश्रम, कितने घर के ठौर,नाहक ही परेशान हैं, मचा रहे हो शोर।
कुछ ख़ामी बच्चों मे, कुछ रखते हो आप,
खुद भी कुछ बदलिये, नया चल रहा दौर।
बेटों की गलती सभी, खुद पर दिया न ध्यान,
निज आचरण कैसा रहा, क्या उसकी पहचान?
बो कर पेड़ बबूल का, कर रहे आम की चाह,
संस्कारों पर ध्यान नहीं, क्यों चाह मिले सम्मान?
समझो बातें शास्त्र की, चार आश्रम बात,
तीन आश्रम हँसी ख़ुशी, चौथे पर जज़्बात।
मन के मालिक खुद रहे, नयी लकीरें रोज़,
जब बच्चे खुद की करें, करते हो आघात।
अ कीर्ति वर्द्धन
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