चांदनी चार दिन की है ढल जाएगी
यार तुमको मेरी बात खल जाएगीबात मुह से अगर सच निकल जाएगी
ध्यान रक्खा नहीं यदि समय का अगर
तो जवानी तुम्हारी मचल जाएगी
रूप पे अपने इतना ना इतराइए
चांदनी चार दिन की है ढल जाएगी
चाय के साथ कुछ गुफ़्तगू कीजिए
तो तबीयत हमारी बहल जाएगी
बात दिल की न मानी अगर आपने
एक दिन जिन्दगी फिर टहल जाएगी
क्या कहेगा कोई सोचिए मत कभी
सोचते-सोचते जां निकल जाएगी
प्यार करिये कहीं बीत जाए ना पल
अन्यथा शुभ घड़ी ये भी टल जाएगी
जाइए मत कहीं बैठिए सामने
आपको देखकर हो गज़ल जाएगी
जब कहानी सुनोगे मेरी आप तो
'जय' तेरी ऑंख भी हो सजल जाएगी
*
~जयराम जय
'पर्णिका',बी-11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास,कल्याणपुर,कानपुर-208017(उ.प्र.)
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