मैं यूँ ही बस मुस्कराता, गुनगुनाता हूँ,
मुश्किलों के बीच भी, खुश हो जाता हूँ।चाहत नहीं मुझको मिलें दौलत जहान की,
जो भी मिला मुकद्दर मान खिलखिलाता हूँ।
आज पौधे रोपकर, खुश हूँ बहुत,
कुछ पुराने देखकर, खुश हूँ बहुत।
कल बड़े हो, वृक्ष यह बन जायेंगे,
आज ही यह सोचकर, खुश हूँ बहुत।
आज हमने कैंथ बरगद महुआ लगाए,
शहतूत कटहल शमी चांदनी के लगाए।
नीम पीपल गुलमोहर सी छाया मिले,
बस यही सोचकर कुछ कदम्ब लगाए।
हो सके तो आप भी कुछ कीजिए,
कुछ पौधे धरा पर आप रौप दीजिए।
पशु पक्षी परिंदों को कुछ राहत मिलेगी,
बच्चों को शुद्ध स्वच्छ वातावरण दीजिए।
अ कीर्ति वर्द्धन
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