आदमी और मौत
आदमी आदमी हैचाहे जैसा भी हो
धरती का अब्बल नफीस जीव है
उसके इतिहास, भूगोल, समाजशास्त्र, बायलाजी में गये बिना भी आदमी आदमी ही है
अर्से से सिंचित उसकी मानसिकता
वर्षों से पोशा उसका शरीर
संधर्षों में पला उसका मन
पूर्वजों का दिया दाय
परिवार से मिला रिक्थ
समाज से मिले स्नेह और घाव
सबको समेटे है आदमी
आखिर आदमी तो आदमी है
अचानक से धर्मराज कि यमराज
पसारें अपना पंजा
लीले अगर हिंसक मौत
उस आदमी की इहलोक से वियुक्ति है
स्वर्ग कि नर्क के लिए नियुक्ति है
उसके निर्भरितों के लिए पीड़ा है
देश के लिए अमोघ व्रीड़ा है
परिवार दर्दिल
समाज सर्दिल
प्रश्न किससे?
सरकार से, समाज से कि मानवता से?
मानव जीवन का पुराना प्रश्न है
अनुत्तरित
चूँकि आदमी अपूर्ण है
लेकिन आदमी आदमी है।
राधामोहन मिश्र माधव
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