बरसात , बारिश, वर्षा ।
न कहीं पानी ही रहा ,न मेंढ़क की टर्राहट ।
मेघ छाए गरजे चमके ,
न बारिश की आहट ।।
थोड़ी सी बारिश हुई ,
सावन मक्के की खेती ।
वर्षा की है पता नहीं ,
कृषक वर्ग कैसे चेती ।।
आया है बरसात किंतु ,
बारिश का है पता नहीं ।
कह ये सकते हम नहीं ,
मानव की खता नहीं ।।
वर्षा की उम्मीद लिए ,
बरसात लाए न वर्षा ।
उमस से तप रहे हम ,
वर्षा हेतु मन है तरसा ।।
न मेंढ़क टर्राता कहीं ,
न झींगुर की आवाज ।
न कहीं कीड़े फतिंगे ,
न प्रकृति की है साज ।।
हो जाए जमके बारिश ,
हर्ष उपजे हर सीने में ।
आरंभ हो ये धान खेती ,
मजा आ जाए जीने में ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
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