साहित्य जगत के दद्दा है मैथिलीशरण गुप्त
सत्येंद्र कुमार पाठक
हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। हिन्दी साहित्य जगत के दद्दा एवं खड़ी बोली के प्रथम कवि राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 03 अगस्त 1886 और 78 वर्ष की आयु में निधन 12 दिसंबर 1964 हुआ है । उनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के काल में 1912 की भारत भारती की रचना होने के कारण कारण महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की उपाधि दी थी।[ मैथिलीशरण गुप्त की जयन्तीप्रत्येक वर्ष ३ अगस्त को 'कवि दिवस' के रूप में मनाया जाता है। सन १९५४ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। मैथिलीशरण गुप्त पर जारी डाक टिकट जारी है । कवि, राजनेता, नाटककार, अनुवादक और पंचवटी, सिद्धराज, साकेत, यशोधरा, विश्ववेदना आदि खिताब है । गुप्त जी को हिन्दुस्तान अकादमी पुरस्का (1935) , मंगलाप्रसाद पुरस्कार , हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा (1937) , साहित्यवाचस्पति (1946) और पद्मभूषण (1954) से अलंगकृत किया गया है । महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से गुप्त जी ने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में प्रयास किया था । ब्रजभाषा काव्य-भाषा को छोड़कर समय और संदर्भों के अनुकूल होने के कारण कवियों ने इसे अपनी काव्य-अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया था । हिन्दी कविता के इतिहास में यह गुप्त जी का सबसे बड़ा योगदान है। पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा गुप्त जी के काव्य के प्रथम गुण पंचवटी' से 'जयद्रथ वध', 'यशोधरा' और 'साकेत' तक में प्रतिष्ठित और 'साकेत' सर्वोच्च शिखर है। मैथिलीशरण गुप्त का जन्म ३ अगस्त १८८६ में पिता वैष्णव संत सेठ रामचरण कनकने की पत्नी काशी बाई की तीसरी संतान मैथिलीशरण गुप्त का जन्म उत्तर प्रदेश में झांसी के चिरगांव में 03 अगस्त 1886 ई. में हुआ। हिन्दी, बंगला, संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया। मुंशी अजमेरी जी ने उनका मार्गदर्शन किया। १२ वर्ष की अवस्था में ब्रजभाषा में कनकलता से कविता आरम्भ किया। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की मासिक "सरस्वती" में गुप्त जी की कविताएं प्रकाशित होना प्रारम्भ हो गई थी । प्रथम काव्य संग्रह "रंग में भंग" , जयद्रथ वध" , बंगाली के काव्य ग्रन्थ "मेघनाथ वध", "ब्रजांगना" का अनुवाद भी किया। सन् 1912 - 1913 ई. में राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत "भारत भारती" का प्रकाशन किया। संस्कृत के ग्रन्थ "स्वप्नवासवदत्ता" का अनुवाद प्रकाशित कराया। सन् १९१६-१७ ई. में महाकाव्य 'साकेत' की रचना आरम्भ की। उर्मिला के प्रति उपेक्षा भाव ग्रन्थ में दूर किये। प्रेस की स्थापना कर अपनी पुस्तकें छापना शुरु किया। साकेत तथा पंचवटी आदि अन्य ग्रन्थ सन् १९३१ में पूर्ण किये। राष्ट्रपिता गांधी जी के निकट सम्पर्क में आये। 'यशोधरा' सन् १९३२ ई. में लिखी। गांधी जी ने उन्हें "राष्टकवि" की संज्ञा प्रदान की। 16 अप्रैल 1941 को वे व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर लिए गए। पहले उन्हें झाँसी और फिर आगरा जेल ले जाया गया। आरोप सिद्ध न होने के कारण उन्हें सात महीने बाद छोड़ दिया गया। सन् 1948 में आगरा विश्वविद्यालय से उन्हें डी.लिट. की उपाधि से सम्मानित किया गया। १९५२-१९६४ तक राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुये। सन् १९५३ ई. में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने सन् १९६२ ई. में अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया तथा हिन्दू विश्वविद्यालय के द्वारा डी.लिट. से सम्मानित किये गये। वे वहाँ मानद प्रोफेसर के रूप में नियुक्त भी हुए। १९५४ में साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। चिरगाँव में उन्होंने १९११ में साहित्य सदन नाम से स्वयं की प्रैस शुरू की और झांसी में १९५४-५५ में मानस-मुद्रण की स्थापना की। "सरस्वती" की स्वर्ण जयन्ती समारोह का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता गुप्त जी ने की। सन् १९६३ ई० में अनुज सियाराम शरण गुप्त के निधन ने अपूर्णनीय आघात पहुंचाया। १२ दिसम्बर १९६४ ई. को दिल का दौरा पड़ा और साहित्य का जगमगाता तारा अस्त हो गया। ७८ वर्ष की आयु में दो महाकाव्य, १९ खण्डकाव्य, काव्यगीत, नाटिकायें आदि लिखी। उनके काव्य में राष्ट्रीय चेतना, धार्मिक भावना और मानवीय उत्थान प्रतिबिम्बित है। 'भारत भारती' के तीन खण्ड में देश का अतीत, वर्तमान और भविष्य चित्रित है। वे मानववादी, नैतिक और सांस्कृतिक काव्यधारा के विशिष्ट कवि थे। हिन्दी में लेखन आरम्भ करने से पूर्व उन्होंने रसिकेन्द्र नाम से ब्रजभाषा में कविताएँ, दोहा, चौपाई, छप्पय आदि छंद लिखे। ये रचनाएँ 1904-05 के बीच वैश्योपकारक (कलकत्ता), वेंकटेश्वर (बम्बई) और मोहिनी (कन्नौज) जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। उनकी हिन्दी में लिखी कृतियाँ इंदु, प्रताप, प्रभा जैसी पत्रिकाओं में छपती रहीं। प्रताप में विदग्ध हृदय नाम से उनकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित हुईं। मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जयंती प्रदेश में प्रतिवर्ष तीन अगस्त को 'कवि दिवस' मनाई जाती है गुप्त जी की रचनाओं में महाकाव्य- साकेत 1931, यशोधरा 1932 , खण्डकाव्य- जयद्रथ वध 1910, भारत-भारती 1912, पंचवटी 1925, द्वापर 1936, सिद्धराज, नहुष, अंजलि और अर्घ्य, अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, किसान 1917, कुणाल गीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल 1929, जय भारत 1952, युद्ध, झंकार 1929 , पृथ्वीपुत्र, वक संहार [क], शकुंतला, विश्व वेदना, राजा प्रजा, विष्णुप्रिया, उर्मिला, लीला[ग], प्रदक्षिणा, दिवोदास [ख], भूमि-भाग , नाटक में रंग में भंग 1909, राजा-प्रजा, वन वैभव [क], विकट भट , विरहिणी , वैतालिक, शक्ति, सैरन्ध्री , स्वदेश संगीत, हिड़िम्बा , हिन्दू, चंद्रहास , फुटकर रचनाओं में केशों की कथा, स्वर्गसहोदर, मंगल घट में संग्रहीत हैं।
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