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है विडम्बना देश की, सब मौन हैं,

है विडम्बना देश की, सब मौन हैं,

कुछ डरे सहमे यहाँ, कुछ गौण हैं।
निज स्वार्थ हावी हुए, राष्ट्र दोयम,
मतलब निकल गया, पूछते कौन है?

चाह रहे सब राष्ट्र में चैनो अमन हो,
भगत सिंह पड़ोसी के घर, नमन हो।
मैं और मेरे सब सुखी औ’ सम्पन्न रहें,
सरहद पर सैनिकों का, चाहे दमन हो।

देख कर भ्रष्ट आचरण, चुप रहें,
जात पात में बँट रहे, पर चुप रहें।
शोषण को ही नियती जो मान बैठे,
देखते अनाचार सम्मुख, चुप रहें।

अ कीर्ति वर्द्धन
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