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मां

मां

मां का दर्जा सर्वोच्च जगत में ,
मां होती जीवन का छायाकार ।
मां ही हमको जन्म है यह देती ,
मां लूटाती हमपे अधिक प्यार ।।
मां ही हमको दूध भी पिलाती ,
मां ही हमको नहलाती धुलाती ।
हमें सुला काम करती है माता ,
रुलाई सुन मां है दौड़ी आती ।।
एकपल भी निजसे दूर न करे ,
सदा रखती हमें अपने पास में ।
हमें खुश देख वह खुश है होती ,
उदास देख दिखतीं उदास में ।।
सदा फैला रखती निज आंचल ,
पालती हमें ममता की छांव में ।
हमें प्राण भी न्यौछावर करती ,
कभी नहीं दिखती है दांव में ।।
हंसाती बोलाती खूब खेलाती ,
मालिश कर दम भरती पांव में ।
उंगली पकड़ा खड़ा है करती ,
चलना सिखाती निज छांव में ।।
भारतीय संस्कार हमें सिखाती ,
इक मां को छोड़ ये जाने कौन ?
मां से बड़ी कौन इस दुनिया में ,
बताओ तो सही क्यों हो मौन ?
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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