आज रामचरितमानस के रचयिता और महाकवि तुलसीदास जी की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में उनकी चरणों में समर्पित एक रचना का प्रयास :
था एक बालक ऐसा ही जन्मा ,
जिसका जन्मरूप अवतार हुआ ।बारह माह तक मां गर्भ रहा जो ,
दांतों संग ही धरा से प्यार हुआ ।।
जन्म लेते ही हर बच्चा है रोता ,
जन्म लेते ही राम राम बोला था ।
नामकरण हुआ इसी आधार पर ,
तब नाम ही पड़ा रामबोला था ।।
बचपन में थे मातापिता सिधारे ,
घर में संग रहती एक दासी थी ।
अकेली पा ले चली निज घर को ,
किंतु दासी मृत्यु की प्यासी थी ।।
विधना को जैसे मंजूर नहीं यह ,
विधना जैसे स्वयं बना हो अरि ।
छिन लिया ये भी सहारा उसका ,
दुनिया से दासी भी तो चल पड़ी।।
आरंभ किए भिक्षाटन ही करना ,
जैसे विधना को यही मंजूर था ।
या क्यूं न कहूं भाग्य में लिखा ये ,
नवजीवन का ही नव दस्तूर था ।।
अबतक तो कहलाए रामबोला ,
गुरुज्ञान पाकर तुलसीदास बने ।
घाट पर बैठकर कविता लिखते ,
रामचरितमानस की आस बने ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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