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असमंजस में सिहरे जान ।।

असमंजस में सिहरे जान ।।

डॉ रामकृष्ण मिश्र

पुनियाँ के चान निअन अनमन मुठान हल
अगहनुआ घाम निअन देह।
तनी -मनी हिरदा के छू के ससर जा हल
पिअराएल अखरा सिनेह।।
कउने रंगरेजवा के मतिआ हेराएल
कि रंगवे फेंटौलक परान।।


बरहम थान का तो उतरल नाचे पड़िया
जे देखते हो जा हल अलोप
हिरदा में उसका के चल देलक अंते
कि टभकित रहल ओकरे टोप।
भल मतिया मारल कुरखेतवा के अरिआ
कि भेलइ बसमतिआ जिआन।।


जने-तने छितराएल रेंगनी के टुसबा
जे रोकइ परदेसिओ के राह।
लिलकल भउरवा के अँखिआ मताएल
कि भर मौनी अँकुरल हे चाह।।
अइसन रउदारी में तिरमिरिआ लगलइ
कि गब्भा से हुलकइ न धान।।
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रामकृष्ण
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