Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

सुख....

सुख.... 

पूर्णिमा 
मां की ममता ही कुछ ऐसी है कि वह अपने बच्चों पर जितना भी प्यार लुटा ले उसे कम ही लगता है और उस प्यार को सबसे ज्यादा वो अपने बच्चों के खाने मैं लुटाती है ऐसे ही सुधा भी अपनी बेटी आराध्या को स्कूल लंच बॉक्स में अपनी ओर से प्यार से उसकी मनपसंद डिशेज बनाकर उसमें कुछ ज्यादा ही देती थी क्योंकि यही वो प्रयास होते हैं जिससे बच्चे सही तरह से शारीरिक रूप से बढ़ते हैं पर वह बीते कुछ दिनों से लगातार नोटिस कर रही थी कि लंचबॉक्स में अधिक खाना देने के बाद भी आराध्या स्कूल से आते ही खाने के ऐसे मांगती थी जैसे कि वह सुबह से भूखे पेट हो.... अब बच्चा सामने से मां से मांगकर खाएं तो इससे ज्यादा संतुष्टि किसी मां नहीं मिल सकती सुधा भी आराध्या को अधिक खाना परोसने पर खुश होती थी एक दिन स्कूल से लौटने पर आराध्या के साथ उसकी हम उम्र एक लड़की उसके साथ घर आया देखकर सुधा ने पूछा....ये कौन है आरु आराध्या बोली....मम्मी... यह सानवी है मेरी बेस्ट फ्रेंड... काफी दिनों से हमारे घर को देखना चाहती थी सो आज मैं इसे अपने साथ ले ही आई कहकर आराध्या बाथरूम में कपड़े बदलने के लिए चली गई तो सानवी सुधा की और मुस्कुरा कर देखा रही थी और वो पास आकर सुधा के हाथों को चूमते हुए आंटी आप खाना बहुत अच्छा बनाती है.... सानवी की बात सुनकर पहले वो सुधा मुस्कुराई मगर अगले ही पल उसका माथा ठनका... अच्छा तो यह बात है अब मेरी समझ में आया की आराध्या अधिक लंचबॉक्स कयुं ले जाने पर भी वापसी में आकर भूखे पेट की तरह कयुं खाना मांगती है सुधा गुस्से में झुंझला उठी और तुरंत अंदर कमरे में जा पहुंची जहां आराध्या अपनी स्कूल ड्रेस समेट कर रख रही थी सुधा उसपर बरस पडी ये सब क्या हैं आराध्या....मैं रोज सुबह जल्दी उठकर इतनी मेहनत करके तुम्हारे लिए अपने हाथ से नाश्ता बनाकर तुम्हें देती हूं और तुम इसे सानवी को खिला देती हो... तुम्हें पता भी है कितनी मेहनत लगती है अपने सूट को पहनते हुए आराध्या के हाथ रुक गए मगर वो बड़ी मासूमियत से बोली.... में जानती हूं मम्मी आप मेरे लिए बड़े प्यार से लंचबॉक्स तैयार करती है और सभी मम्मियां अपने बच्चों के लिए ऐसे ही प्यार से बनाती है मगर इसकी मम्मी नहीं है ना इसके घर में खाना इनका नौकर बनाता है पर इसका मन मम्मी के हाथ का खाना खाने का होता है इसलिए .... कहकर आराध्या तो मुस्कुरा कर बाहर निकल गई मगर सुधा निशब्द सी वहीं खड़ी अपनी भीगी हुई पलकों को साफ करने लगी उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसकी आंखें ही नहीं बल्कि अंदर कहीं भी कुछ भीग उठा है उस समय उसे ऐसा लग रहा था कि वो मां तो बहुत पहले बन चुकी थी पर मातृत्व का सच्चा सुख उसे आज मिला है ...वह स्वयं को संभालते हुए बाहर आई और दोनों बेटियों को प्यार से खाना खिलाने लगी और ममतामई हाथों से सानवी के गालों को सहलाते हुए बोली.... बेटा तुम्हे मेरे हाथों का खाना पसंद हैं ना कल से तुम्हारी ये मां अपनी दोनों बेटियों के लिए दो लंचबॉक्स तैयार करके भेजेगी और हां जब भी मन करे यहां चली आया करो ये घर मेरी इस प्यारी बेटी का भी है अचानक सानवी खाना छोड़कर उठी और सुधा के सीने से लग गई सुधा ने सानवी के साथ साथ आराध्या को भी अपनी बाहों में समेट लिया
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ