मेरी माटी मेरा देश के तहत
आज वीर स्वतंत्रता सेनानी पं राजकुमार शुक्ल जयंती की आप समस्त माताओं बहनों एवं बंधुओं को सपरिवार हार्दिक बधाई एवं बहुत बहुत शुभकामनाएं । परम आदरणीय पं राजकुमार शुक्ल जी के चरणों में समर्पित एवं बिहार सरकार एवं केंद्र सरकार की ध्यानाकर्षण हेतु एक रचना का प्रयास :
जब अफ्रिका से वापस आए गांधी ,
असहयोग आंदोलन जब वे चलाए थे ।
चंपारण का ही रहनेवाला नवयुवक ,
चंपारण में उन्हें शीघ्र तब बुलाए थे ।।
शुक्ल जी थे दिखने में बहुत सीधे साधे ,
महात्मा गांधी ने तब उन्हें इन्कार किया ।
बार बार जब उनसे हुई थी ये विनती ,
फिर उन्होंने आग्रह को स्वीकार किया ।।
चंपारण में तब हाहाकार ही मची थी ,
नील की खेती तब अवश्यंभावी था ।
प्रति बीघे तीन कट्ठे नील की खेती ,
अंग्रेजी शासन वहां बहुत प्रभावी था ।।
तबतक संघर्ष किए थे वे अकेले ,
कई बार अंग्रेज से वे कोरे थे खाए ।
किंतु हार न मानने वाला इस युवक को ,
कई कई बार अंग्रेज जेल भेजवाए ।।
आकर दो दिन वहां रुके थे गांधी ,
वहीं से सत्याग्रह निज आरंभ किया ।
देखा जब भोले युवक की वे फुर्ती ,
हर आंदोलन ही वहीं से प्रारंभ किया ।।
वहीं उन्होंने लिया था यह संकल्प ,
आज से एक धोती तन पे रहेगा वस्त्र ।
भूख हड़ताल और यह धरना प्रदर्शन ,
अहिंसात्मक आंदोलन हमारा होगा अस्त्र ।।
जिन्हें उम्मीद नहीं जल्दी भागेंगे गोरे ,
चार माह में ही शुक्ल ने कर दिखाया था ।
लाठी कोड़े खाकर औ जेल जाकर ,
चतुर गोरों को वहां से ही भगाया था ।।
उनसे भी महान उनकी थीं धर्मपत्नी ,
जिनने पति को भी प्रभावित किया था ।
पत्नी की बातों से होकर वे प्रभावित ,
गोरों को खदेड़ने का संकल्प लिया था ।।
किंतु दुर्भाग्य की बात आज है एक ही ,
पं शुक्ल जी को यथोचित अरमान न मिला ।
वीर सेनानियों में कहां हो गए वे गुम ,
आज तक उन्हें यथोचित सम्मान न मिला ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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