गीत, ग़ज़ल ना रुबाई, मैं कहता हूँ,
जमाने की बात, जमाने को कहता हूँ।आप झरने से झरते, किसी महल के,
मैं नदी की उन्मुक्त धार सा बहता हूँ।
नहीं करता खिलवाड़, शब्दों के साथ मैं,
पनघट पर पनिहारिन, गागर सा रहता हूँ।
छन्द-अलंकार के गहनों से सजी कविता नही मेरी,
अल्हड यौवना सा मस्त, अमीरों के तंज सहता हूँ।
संवेदनाओं के प्रति जागरूक, मगर खुदगर्ज नही हूँ,
मैं कवि हूँ, दर्द के भी दर्द का, दर्द कहता हूँ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com