नारी समानता
नारी को समान बनाना क्या ,नारी तो स्वयं है नर से ऊपर ।
नारी ही जगत की मां बनती ,
चंद्रयान में नारी सबसे सुपर ।।
नारी प्राथमिकता ईश ने दिया ,
जगज्जननी सृष्टि आधार है ।
कौन सा स्थान दूं मैं पुरुष को ,
नारी को ही बनाता व्यापार है ।।
नारी व्यथित असुर शक्ति से ,
कष्ट झेलती रहती अपार है ।
दैहिक आर्थिक प्रताड़ित होती ,
नारी हत्या तो आज भरमार है ।।
कहां नारी अधिकार सुरक्षित ,
कहां नारी को मिलता प्यार है ।
सब कहते नारी की समानता ,
कहां सुरक्षित नारी अधिकार है ।।
नारी कहते सर्वोच्च जगत में ,
नारी ही नर जीवन का सार है ।
जबसे नारी यह होश संभालती
प्रताड़ना की ही झेलती मार है ।।
नारी को पहले हम दें समानता ,
नारी बिन नर का भारी हार है ।
नारी का जबतक सम्मान नहीं ,
पुरुष वर्ग तब तक शर्मसार है ।।
क्या नारी का है अरमान नहीं ,
या चाहती नहीं वह भी प्यार है ?
क्यों पुरुष वर्ग मन में संजोए ,
भीतर चाकू लिए पैनी धार है ?
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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