रक्षाबंधन में बाधा
देख मां रुक्मिणी ललिता राधा ,रक्षाबंधन में भी पहुंचा व्याधा ।
भद्रा टपका बीच में ही आकर ,
रक्षाबंधन में भी बनाकर बाधा ।।
भाई बहन के इस शुभ प्यार में ,
यह ऐसा अशुभ कहां से आया ।
पूर्णिमा होता सदा शुभ फलदाई ,
ये भद्रा नक्षत्र सबको भरमाया ।।
अत्यल्प समय मिली बहनों को ,
भाईयों को बांधने हेतु ये राखी ।
तुम भी किसी की बहनें ही थीं ,
रक्षाबंधन के पावन तू ही साखी।।
पूरा समय घेरा यह अशुभ भद्रा ,
निशा काल रक्षाबंधन अनुचित ।
कुछ पल भाई बहनों को मिला ,
पावन रक्षाबंधन हेतु यथोचित ।।
भद्रा जाते ही भाद्रपद है आया ,
बीच में मिला समय ही अत्यल्प ।
अत्यल्प समय से मजबूर बहनें ,
रक्षाबंधन हेतु था कोई विकल्प ।।
होत प्रभात रक्षाबंधन हैं मनाईं ,
शीघ्रता में ही ये राखी है बंधवाई ।
शुभ मुहूर्त में निभाना था जरूरी ,
समय से मजबूर ये सारे थे भाई ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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