रक्षाबंधन
सावन का पूर्णिमा है आया ,ले भाईबहन का रक्षाबंधन ।
दोनों की ये पावन हैं रस्में ,
आजीवन ढोने हेतु कंधन ।।
राखीबंधन पूर्व राखी पूछा ,
मुझे बताओ बहन के भाई ।
मेरा मूल्य क्या है जगत में ,
जिसे खरीद बहन है लाई ।।
बड़े प्रेम से राखी खरीदी ,
जिसे बांधोगे निज कलाई ।
कलाई तेरे सुशोभित होंगे ,
फिर खाओगे तुम मिठाई ।।
भाई बोला सुन भाई राखी ,
तू स्वयं मेरी बहन के भाई ।
तू बंधता जिसके कलाई में ,
वह है बनता उसका भाई ।।
तुम स्वयं भाईचारा बढ़ाते ,
फिर क्यों पूछे तुम मूल्य हो ।
तुम से महान कहां धरा पर ,
तुम तो स्वयं ही बहुमूल्य हो ।।
जिस कलाई तुम हो बंधते ,
वही बनता पहले तेरा भाई ।
बांधनेवाली बहन वह होती ,
बहन होती नहीं कभी पराई ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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