जहां मोदी सा प्रधान हो ,
जहां गंगा सा पावन ज्ञान हो ,
क्यों न भारत को अभिमान हो ।
जहां ऋषि महर्षि का मान हो ,
जहां देव देवियों के स्थान हो ,
जहां विवेकानंद विराजमान हों ,
क्यों न इस धरती का भान हो ।
जहां का प्रशस्त विज्ञान हो ,
जहां जन्म लेते ही विद्वान हो ,
जहां जन जन ही दयावान हो ,
क्यों न वह विश्व का प्रान हो ।
जहां सुंदर राष्ट्रगीत राष्ट्रगान हो ,
राष्ट्र का पूरा होता अरमान हो ,
जो राष्ट्र स्वयं प्रतिभावान हो ,
क्यों न वह विश्व का सम्मान हो ।
जहां संस्कृति आलीशान हो ,
जहां सुंदर वचन का बयान हो ,
जिसका विश्व में ही गुणगान हो ,
क्यों न विश्व में ऊंचा स्थान हो ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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