आजाद भारत तू महापावन ,
जिसकी शान लहराए तिरंगा ।भारत तू स्वयं ही सम्मानित ,
जिसके सम्मान में बहती गंगा ।।
तेरी धरा भी स्वयं ही पावन ,
जिसे संभाले शेष भुजंगा ।
तेरे सेवक सारे भारतवासी ,
सेवा संस्कृति तव शृंगार टंगा ।।
कुछ दुष्ट लाल भी हैं तेरे ही ,
सदा मचाए रहते देश में दंगा ।
देश में रह देशवासियों को ही ,
नाच दिखाते स्वयं होकर नंगा ।।
भारत में ही जन्मा रहना खाना ,
भारत से करे व्यवहार द्विरंगा ।
जिसके बल पर हमारे ही करि ,
हमसे लेना चाहता सदा पंगा ।।
ऐसे भारतीय भारतीय दुश्मन ,
निज को मन में अलग है रंगा ।
उसे भी अपने ही रंग में रंग ले ,
हमारी विनती तुमसे है तिरंगा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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