साँप और नेता
जबसे हमने आस्तीन में, साँप पालने सीखे हैं,
अक्सर देखा साँप घरों का, अपने रास्ता भूले हैं।
शब्दों में भी ज़हर और वाणी में भी ज़हर भरा,
देख आदमी की फ़ितरत, ज़हर उगलना भूले हैं।
साँप के बस एक फ़न होता, नेता हरफ़न होता,
देख नेताओं के फ़न, निज फ़न के फ़न को भूले हैं।
ज़हर साँप का ज़हरीला होता, ज्ञानी जन बतलाते,
सुनकर मानव की बातें, साँप ज़हर को भूले हैं।
अ कीर्ति वर्द्धन
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