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नदी और बाढ़

नदी और बाढ़

दोष लगाते नदियों पर, बरसात में उफनाती हैं,
वर्षा का थोड़ा जल भी, वहन नहीं कर पाती हैं।
नहीं सोचते क्यों नदियों से, हम खिलवाड़ कर रहे,
नदियों की भूमि पर क़ब्ज़ा, सहन नहीं कर पाती हैं।


तटबंध बनाकर हमने उसकी, बढ़त रोक दी,
नगर गाँव का कचरा भरकर, थाह रोक दी।
नहीं खनन नीति स्पष्ट यहाँ, सरकारों की,
नदी किनारे मकान बनाकर, राह रोक दी।


दोष लगाते नदी बाढ़ से, लोग मर रहे,
पानी का प्रकोप देखकर, लोग डर रहे।
नही सोचते हमने क्या अत्याचार किये,
क्यों तटबंध नदी के टूटे, लोग सिमट रहे?

अ कीर्ति वर्द्धन
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