- जयंती पर साहित्य सम्मेलन में दी गई काव्यांजलि, अनिल कुमार के काव्य-संग्रह 'अनुभूतियाँ' का हुआ लोकार्पण ।
पटना, ६ अगस्त। महाकवि रामदयाल पाण्डेय न केवल एक महान स्वतंत्रता-सेनानी, ओज और राष्ट्रीय भाव के महाकवि, तेजस्वी पत्रकार और हिन्दी के महान उन्नायकों में से एक थे, बल्कि सिद्धांत और आदर्शों से कभी न डिगने वाले एक स्वाभिमानी साधु-पुरुष भी थे। उन्होंने भारत सरकार से प्राप्त होने वाले 'स्वतंत्रता-सेनानी पेंशन' लेना भी यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि "मातृ-भूमि' की सेवा एक पुत्र के रूप में की है। इसका शुल्क स्वीकार नहीं कर सकता!”
यह बातें रविवार को, साहित्य सम्मेलन में, महाकवि की जयंती पर आयोजित कवि-सम्मेलन और पुस्तक-लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि, पाण्डेय जी ने हिन्दी और हिन्दी साहित्य सम्मेलन की बड़ी सेवा की। पाँच-पाँच बार सम्मेलन के अध्यक्ष चुने गए। सम्मेलन भवन के निर्माण में अपने सिर पर ईंट-गारे ढोए और अन्य साहित्यकारों को भी इस हेतु प्रेरित किया। इन्हीं सद्गुणों के कारण उन्हें, बिहार सरकार ने राष्ट्रभाषा परिषद का उपाध्यक्ष-सह-निदेशक बनाया था। इस पद को उनके ही सम्मान में उत्क्रमित किया गया था और उन्हें राज्यमंत्री का स्तर प्रदान किया गया था। किंतु जब उन्हें लगा कि राज्य-सरकार उनके विचार और सिद्धांत के सामने बाधा बन रही है, तो उस पद को त्यागने में उन्होंने एक क्षण भी नहीं लगाया। आदर्श और सिद्धांत, राष्ट्र और राष्ट्र-भाषा का विषय उनके लिए और किसी भी वस्तु अथवा पद से बहुत बड़ा था।
इस अवसर पर कवि अनिल कुमार के काव्य-संग्रह 'अनुभूतियाँ' का लोकार्पण करते हुए डा सुलभ ने कहा कि वित्तीय सेवा में रहकर भी कवि अनिल ने अपनी काव्य-प्रतिभा को रूपए-पैसे के हिशाब-किताब से बचाए रखा और सारस्वत-सृजन में अनुरक्त रहे, यह साहित्य की एक बड़ी उपलब्धि और उसकी रचनात्मक-ऊर्जा का परिचायक है। लोकार्पित पुस्तक में कवि ने अपनी जीवनानुभूतियों और काव्य-कल्पनाओं को मंजुल शब्द दिए हैं।
अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि महकवि राम दयाल पाण्डेय एक राष्ट्र-भक्त कवि ही नहीं एक महान स्वतंत्रता-सेनानी और बड़े पत्रकार थे। वे 'विश्वमित्र', 'नव राष्ट्र' समेत अनेक पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रहे। स्वतंत्रता-आंदोलन में उनकी गतिविधियों से नाराज़ अंग्रेजी-सरकार ने उनके विरुद्ध 'देखते ही गोली मार देने' का आदेश दे रखा था।
समारोह के मुख्यअतिथि और अवकाश प्राप्त प्राचार्य प्रो बासुकीनाथ झा, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, बच्चा ठाकुर, डा ध्रुव कुमार, डा अर्चना त्रिपाठी, विवेक कुमार गुप्त आदि ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि जय प्रकाश पुजारी, शुभ चंद्र सिन्हा, रंजना लता, डा अर्चना त्रिपाठी, अर्जुन प्रसाद सिंह, नरेंद्र देव आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं से महकवि के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
कवि की अर्द्धांगिनी सुनीता कुमारी, अमीर नाथ शर्मा, सूबेदार नन्दन कुमार मीत, दुख दमन सिंह, विजय कुमार दिवाकर, डौली कुमारी , श्रीबाबु आदि ने भी महाकवि के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की।
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