नफरत
जी हाँनफरत है मुझे
मजहब के उन ठेकेदारों से
जिनकी
बोलती बन्द हो जाती है
जब
एक मजहबी
अपने ही मजहब के
दूसरे मजहबी को मारता है।
और ठेकेदार
गाँधी के तीन बंदरों की तरह
आँख बंद
कान बंद
और
मुँह बंद किए रहता है।
हाँ
गाँधी के
तीनों किरदार
जीवन्त हो जाते हैं
जब
सत्ता के विरूद्ध
करनी होती है
कोई साजिश
और तब
जो बंदर देखता नहीं
वह बोलता है
वह सब
जो उसने देखा नहीं,
दूसरा भी
जो कुछ सुनता नहीं
बताता है वह सब
जो उसने सुना ही नहीं
और वह
जिसका मुँह बंद है
जो बोल नहीं सकता
मौन गवाही देता है
उस सबके समर्थन में
जो
न वहाँ हुआ
न किसी ने देखा
न ही किसी ने सुना।
गाँधी के तीन बंदर
सत्ता पर झपट्टा मारने को लालायित
नही देख पाते
मासुम बच्चियों का अपहरण
नही सुन पाते
बलात्कार होती मासूमों की चीख
नही बोल पाते
धर्म के पैगाम सुनाती आयतों का अर्थ
हाँ
वह भी प्रतीक्षारत हैं
बहत्तर हूरों की
जिसकी कल्पना
सुनाती है
पवित्र आसमानी किताब।
अखलाक की मौत
हिला देती है
मजहब के साथ
कुछ सियासती भेड़ियों को भी
टपकने लगती है लार
मानवता के दुश्मनों की
नौचनें को
मानवता की लाश
मगर
मार जाता है लकवा
उनके
कान आँख और मुँह को
जब
मानवता शर्मसार होती है
ईरान इराक में
पाकिस्तान अफगानिस्तान में
सिरिया में
या
ताकतवर
चीन में
रोहिंग्याओं के ऊपर
अत्याचार देखकर।
कहते हैं
जो बोया
वही तो पैदा होगा
शायद
सभ्य समाज में
क़बीलाई प्रथा का चलन
वही कालांतर में बोयी
विष बेल के फल हैं।
अ कीर्ति वर्द्धन
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