अरे भाक!(मगही कविता)
--: भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र 'अणु'-
अरे भाक!
आउ न कुछ बचल-
तो करेला ताक-झांक!!
सोच के नेक करे'
चलल हे एक करे'
बाकी ई तो ना सुधरी-
भले छाने परी खाक!!
बस अपन पांव पूजावेला,
सबके सुनावे ला,
थपथपावेला पीठ अपन-
आउ देखावेला धाक!!
कहावे ला बेजोड़,
गांव-गडी-मोड,
धर रहल हे सबके गोड-
रगड के नाक!!
जे अंधरा भी रोई,
उ दूनों जगह खोई,
समझते ह का होई-
जब सुनेला मिली बाक!!
----------------------------------------वलिदाद,अरवल(बिहार)८०४४०२
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अरे भाक!
आउ न कुछ बचल-
तो करेला ताक-झांक!!
सोच के नेक करे'
चलल हे एक करे'
बाकी ई तो ना सुधरी-
भले छाने परी खाक!!
बस अपन पांव पूजावेला,
सबके सुनावे ला,
थपथपावेला पीठ अपन-
आउ देखावेला धाक!!
कहावे ला बेजोड़,
गांव-गडी-मोड,
धर रहल हे सबके गोड-
रगड के नाक!!
जे अंधरा भी रोई,
उ दूनों जगह खोई,
समझते ह का होई-
जब सुनेला मिली बाक!!
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