भारत अखंड बना दो
देशभक्ति के स्वर निनाद से,जन जन को चैतन्य बना दोखंडित मातृभूमि को प्रचंड शौर्य से,अखंडित अभी बना दो
वैभवशाली अपना अतीत था,आओ गौरवशाली आज बना दो
भारत माता के वीर सपूतों,देश को दुनियाॅ॑ का सरताज बना दो
कण कण में वैभव विखेर कर,जग में भारत का मस्तक ऊंचा कर दो
हिमालय से महापयोधि तक, तिमिर चीर कर देश को जगमग कर दो
प्रमाद में हम डूब गये थे,साहस संचय कर निर्माणों की नूतन राह बना दो
खंडित मातृभूमि को प्रचंड शौर्य से, अखंडित अभी बना दो
राम कृष्ण की इस धरती पर,सृजनों का अनुपम श्रंगार रचा दो
जगती का कोना-कोना जय बोले, ऐसा भारत का इतिहास रचा दो
जो स्वप्न बना है अब तक, मिलकर सभी साकार उसे अब कर दो
सोये सिंह जग जाओ अब तो, दहाड़ लगा कर भारत माता की जय कर दो
देशभक्ति के स्वर निनाद से,जन जन को चैतन्य बना दो
खंडित मातृभूमि को प्रचंड शौर्य से, अखंडित अभी बना दो
जय जय जय भारत की कर दो............जय जय जय.....
अखंड भारत- वन्दे मातरम्
चंद्रप्रकाश गुप्त "चंद्र"
(ओज कवि एवं राष्ट्रवादी चिंतक)
अहमदाबाद, गुजरात
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