आपातकाल का खेल, जिन्होंने खेला था,
आम आदमी को जिसनें, जेलों में ठेला था,अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध, सताया जन जन को,
लोकतंत्र की हत्या, भावनाओं से खेला था।
आज वही तो, लोकतन्त्र पर सवाल उठा रहे,
ज़हर उगल, अभिव्यक्ति पर ख़तरा बता रहे।
लूट खसोट और भ्रष्टाचार में लिप्त रहने वाले,
जाँच एजेंसी- न्यायालय को, धता बता रहे।
अ कीर्ति वर्द्धन
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