विश्व में कोई ऐसी भाषा नहीं है जिसमे संस्कृत के शब्द नहीं है:- जगत नारायण शर्मा
- बिहार संस्कृत विद्यापीठ में मनाया गया संस्कृत दिवस |
- संस्कृत के इतिहास और साहित्य को इसलिए छुपा दिया गया ताकि सनातन को बकवास साबित किया जा सके|
- संस्कृत भाषा ब्रह्मांड की तरह है जिससे सभी भाषाओं की उत्पत्ति हुई है।
बिहार सांस्कृतिक विद्यापीठ के सभागार में रक्षाबंधन एवं संस्कृत दिवस का आयोजन संचालक जगत नारायण शर्मा के सभापतित्व में हुआ | इस अवसर पर श्री शर्मा जी ने अपने सम्बोधन में कहाकि विश्व में कोई ऐसी भाषा नहीं है जिसमे संस्कृत के शब्द नहीं है |संस्कृत के शब्दों को मनुष्य के साथ साथ जानवर भी समझता है |बिहार संस्कृत विद्यापीठ के प्रचार्य श्री जगत नारायण शर्मा ने बतायाकि भारत में प्रतिवर्ष श्रावणी पूर्णिमा के पावन अवसर को संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाता है। श्रावणीपूर्णिमा अर्थात् रक्षाबन्धन ऋषियों के स्मरण तथा पूजा और समर्पण का पर्व माना जाता है। ऋषि ही संस्कृत साहित्य के आदि स्रोत हैं इसलिए श्रावणी पूर्णिमा को ऋषिपर्व और संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाता है। राज्य तथा जिला स्तरों पर संस्कृत दिवस आयोजित किए जाते हैं। इस अवसर पर संस्कृत कवि सम्मेलन, लेखक गोष्ठी, छात्रों की भाषण तथा श्लोकोच्चारण प्रतियोगिता आदि का आयोजन किया जाता है, जिसके माध्यम से संस्कृत के विद्यार्थियों, कवियों तथा लेखकों को उचित मंच प्राप्त होता है।
सन् 1969 में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के आदेश से केन्द्रीय तथा राज्य स्तर पर संस्कृत दिवस मनाने का निर्देश जारी किया गया था। तब से संपूर्ण भारत में संस्कृत दिवस श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन को इसीलिए चुना गया था कि इसी दिन प्राचीन भारत में शिक्षण सत्र शुरू होता था। इसी दिन वेद पाठ का आरंभ होता था तथा इसी दिन छात्र शास्त्रों के अध्ययन का प्रारंभ किया करते थे। पौष माह की पूर्णिमा से श्रावण माह की पूर्णिमा तक अध्ययन बन्द हो जाता था। प्राचीन काल में फिर से श्रावण पूर्णिमा से पौष पूर्णिमा तक अध्ययन चलता था, वर्तमान में भी गुरुकुलों में श्रावण पूर्णिमा से वेदाध्ययन प्रारम्भ किया जाता है, इसीलिए इस दिन को संस्कृत दिवस के रूप से मनाया जाता है। आजकल देश में ही नहीं, विदेश में भी संस्कृत उत्सव बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसमें केन्द्र तथा राज्य सरकारों का भी योगदान उल्लेखनीय है।
पटना उच्य न्यायालय के अधिवक्तापंडित कृष्ण बल्लभ शर्मा ने कहाकि संस्कृत के इतिहास और साहित्य को इसलिए छुपा दिया गया ताकि सनातन को बकवास साबित किया जा सके|
संस्कृत भाषा ब्रह्मांड की तरह है जिससे सभी भाषाओं की उत्पत्ति हुई है।
अंग्रेजी में A QUICK BROWN FOX JUMPS OVER THE LAZY DOG एक प्रसिद्ध वाक्य है जिसमें अंग्रेजी के सभी अल्फाबेट है लेकिन कई अक्षर कई बार दुहराये गये हैं। जबकि संस्कृत में अक्षर बिना दुबारा प्रयोग किये ही लिख सकते हैं। अब संस्कृत में देखिये।
क:खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोटौठीडढण:।
तथोदधीन पफर्बाभीर्मयोSरिल्वाशिषां सह।।
आप देख सकते हैं कि संस्कृत वर्णमाला के सभी 33 व्यंजन इस पद्य में आ जाते हैं। इतना ही नहीं, उनका क्रम भी सही है। संस्कृत दुनिया की एकमात्र ऐसी भाषा है जिसमें माघ कवि ने शिशुपालवधम् महाकाव्य में केवल भ और र, दो ही अक्षरों से एक श्लोक बनाया है:-
भूरिभिर्भारिभिर्भीभीराभूभारैरभिरेभिरे।
भेरीरेभिभिरभ्राभैरूभीरूभिरिभैरिभा:।।
किरातार्जुनीयम् काव्य संग्रह में केवल न व्यंजन से अद्भुत श्लोक बनाया गया है और गजब का कौशल्य प्रयोग करके महाकवि भारवि ने कहा है:-
न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नाना नना ननु।
नुन्नोSनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नन्नुनन्नुनुत्।।
अब हम एक ऐसा उदाहरण देखेंगे जिसमें महायमक अलंकार का प्रयोग किया गया है। इस श्लोक में चार पद हैं, बिलकुल एक जैसे, किन्तु सबके अर्थ अलग-अलग हैं।
विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणाः।
विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणाः।
एकाक्षरी श्लोक:- महाकवि माघ ने अपने महाकाव्य शिशुपाल वध में एकाक्षरी श्लोक दिया है:-
दाददो दुद्ददुद्दादी दाददो दूददीददोः।
दुद्दादं दददे दुद्दे दादाददददोऽददः॥
माघ कवि विलोमपद रचने में भी निपुण थे।
वारणागगभीरा सा साराभीगगणारवा।
कारितारिवधा सेना नासेधा वारितारिका।।
अद्भुत भाषा है जिससे विलोम काव्य बनाना आसान है। बांए से दांए रामकथा, दांए से बांए कृष्णकथा।
वन्देऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे।।
ये तो कुछ उदाहरण है। जो संस्कृत कर सकती है, वह कहीं किसी और भाषा में नहीं। अब समय आ गया है अपने बच्चों को संस्कृत साहित्य का चमत्कार दिखाया जाय और संस्कृत को अनिवार्य विषय घोषित किया जाय। इससे हमारी आने वाली पीढ़ी वेद, पुराण और कई वैज्ञानिक रहस्य और संस्कृति से परिचित हों।।।।
उपस्थित सदस्यों में विद्यापीठ के कुलपति महंथ दिव्या जी, फतुहा कबीर मठ के महंथ ब्रजेश मुनि,मनोज कुमार,सुभाष तिवारी,पुरुषोतम शर्मा,गणेश शर्मा,हेमकांत मिश्र,कविन्द्र कुमार शर्मा,सुभाष तिवारी,वंदना कुमारी, विश्वनाथ पाण्डेय,पंच्नानंद पाण्डेय, सीमाराम राय, डॉ कमलदेव नारायण शुक्ल,देवेन्द्र शर्मा, कृष्ण बल्लभ शर्मा, हृदयनारायण झा ने अपने विचार रखें |
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