मदनलाल ढींगरा को श्रद्धांजलि
राक्षस कुल था रावण का ,जिसने सीताहरण किया था ।
राक्षसकुल में जन्मे रामभक्त ,
विभीषण रामवरण किया था ।।
देशद्रोही घर देशभक्त जन्मा ,
क्यों न उसे भक्त प्रहलाद कहूं ।
दुश्मन हेतु जो बना था दुश्मन ,
क्यों न मैं उससे आह्लाद करूं ।।
देशद्रोही परिवार त्यागा तुमने ,
देश धर्म को तुमने नमन किया ।
विदेश में रह दुश्मन की हत्या ,
अत्याचार का तूने शमन किया ।।
दुश्मन घर रह दुश्मन की हत्या ,
यह होता है कोई अन्याय नहीं ।
जबतक वृक्ष का जड़ न खोदें ,
बिन खोदे कोई भी उपाय नहीं ।।
हैं तेरी ये हिम्मत की बलिहारी ,
प्राण लेने हेतु तुम टूट पड़े थे ।
मां भारती हेतु प्राण की बाजी ,
दुश्मन संहार में तुम जुट पड़े थे ।।
तुमको मेरा बहुत कोटि नमन ,
तुम्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं ।
तुम्हीं हुए भारत के सच्चे लाल ,
चरणों में शब्द समर्पित करता हूं।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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