झेल रही जो घर के भीतर, बहुओं के तीखे बोलों को,
उनसे जाकर पूछो सखियों, दहक रहे शब्दों के शोलों को।तरस रही आँखें जिनकी, बच्चों के संग कुछ समय कटे,
अहम् भुलाकर चाह कर रही, बहुओं के संग हिंडोलों को।
पहले सास बुरी होती थी, ऐसा सबकी सास बताती,
अब बहुओं का कब्जा घर पर, मुश्किल जान बचानी है।
अपनी माँ के गीत सुनाती, बेटे को भी सास ही भाती,
भाभी ख्याल रखे सास का, खुद सासू से मुक्ति पानी है।
एक पक्ष दिखलाया हमने, जहाँ बहुओं की मनमानी है,
कुछ पीड़ाएँ उनकी देखी, जहाँ बहुओं की नादानी है,
सास ननद आराम करें और दिन भर बहु को नाम धरें,
बहू काम मे झौंकी जाती, माँ बेटी की सीख सुहानी है।
बहू बन निज घर में आयी, उसको भी सम्मान मिले,
घर के सारे निर्णयों मे, उसके विचारों को मान मिले।
बदल गया है दौर पुराना, घर में बहुयें ही पिसती थी,
नये दौर में कदम मिलाती, बहुओं को पहचान मिले।
अ कीर्ति वर्द्धन
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com