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कवियों की बातें

कवियों की बातें

बातों की बातों में मत उलझो,
नैनों की बातों में मत उलझो।
कहते हैं कुछ और सोचते कुछ हैं,
कवियों की बातों में मत उलझो।


कभी कभी दिन को रात बता देते,
जुगनू को सुरज सा चमका देते।
कल्पना के पंख बैठ अनूठा सृजन,
उपमाओं से नव इतिहास बना देते।


जग की पीड़ा इनको सबसे ज्यादा होती,
रिश्तों की मर्यादा भी सबसे ज्यादा होती।
दर्द जहां का दिल में लेकर घूमा करते,
आहें खुद के हिस्से में सबसे ज्यादा होती।


दिल की बात जुबां से, नहीं कहते हैं,
नफरत के बाण, जिगर पर सहते हैं।
जख्म बहुत पर लब अपने हँसते रहते,
अहसासों के जज़्बातों में नहीं बहते हैं।

अ कीर्ति वर्द्धन
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