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देर रात को जब कभी घर को आता हूँ,

देर रात को जब कभी घर को आता हूँ,

खाना खाकर आया पत्नी को बतलाता हूँ।
भूख लगे तो पानी पीकर काम चलाता,
कष्ट न हो उसको भूखा ही सो जाता हूँ।


कभी-कभी जब वह किट्टी पार्टी में जाती है,
खाना खाकर आयी वापस आ बतलाती है।
पेट खराब है मेरा आज नहीं खाना खाऊँगा,
बस दूध पीऊँगा, उसे तसल्ली हो जाती है।


हर बात का पत्नी घर में ध्यान करे,
निपट अकेली घर के सारे काम करे।
बस इतना ही सोच चुप रह जाता हूँ,
दिनभर थकी हुई थोडा वो आराम करे।


बुड्ढे बुढ़िया हर घर में अब दो ही रहते,
अपने सुख दुख आपस में साझा करते।
बच्चे कहते साथ चलो मिलकर रह लेंगे,
मन नहीं लगता कहीं छोड घर, ऐसा कहते।

अ कीर्ति वर्द्धन
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