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आखिर, आसमान क्यों रोता

आखिर, आसमान क्यों रोता

उदासीन हो ठहर-ठहरकर,
क्रन्दन करता घहर-घहरकर ,
फफक-फफककर इधर-उधर क्या
कोई स्वप्निल दर्द सँजोता?
आखिर, आसमान क्यों रोता !
श्यामल चादर ओढ़ छुपा मुख,
गाता है किससे अपना दुख,
खुद तो होता उत्पीड़न में
औरों को बेहद सुख होता।
आखिर, आसमान क्यों रोता!
कौन हूक है इसे समाई,
जिससे आँखें हैं भर्राई,
ओटों से कुछ झाँक सोच कुछ,
ना जाने किसका पग धोता!
आखिर, आसमान क्यों रोता!
शायद भू से दूर हुआ है,
इसको इसका नेह छुआ है,
प्रेम –अश्रु से इसीलिए तो
प्रेमी बन हर बार भिंगोता। आखिर, आसमान क्यों रोता!
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