सबसे आगे है हिंदुस्तानी
विश्व में है हमने भी तो सुनी ,खुसुर फुसुर व कानाकानी ।
चंद्रयान दक्षिणी ध्रुव है बैठा ,
सबसे आगे है हिन्दुस्तानी ।।
अबतक पढ़ा मैंने संस्कृति ,
संस्कार सुना जन जुबानी ।
कैसा है भारतीय प्रतिनिधि ,
विश्व को किया पानी पानी ।।
जानें कुछ करते ये क्यों हैं ,
भारत से अपनी मनमानी ।
समझ नहीं कुछ लोगों को ,
भारत में बहुत पड़े हैं ज्ञानी ।।
समझ से परे भारत उनके ,
जिससे करते हैं वे नादानी ।
समझ नहीं उनको आती ,
छेड़छाड़ पहुंचा सकता हानी ।।
सुंदर जिनकी सेवा संस्कृति ,
सुंदर जिनकी मृदुल बानी ।
उनसे उलझना होगा महंगा ,
पडेगा उनको मुंह की खानी ।।
चला पड़ा है विश्व को लेकर ,
कर रहा विश्व की आगवानी ।
सर्वश्रेष्ठ बना है यह मानव ,
उनमें भी श्रेष्ठ है वह प्राणी ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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