घर चला आता हूँ....
शाम होते ही घर के लिए चला आता हूँ,परिन्दों सा अन्दाज़ लिए आता हूँ।
तकता है कोई राह घर के दरवाजे पर,
उसके प्यार की खातिर चला आता हूँ।
नन्हा चूजा झाँकता रहता घोंसले से,
उसके लिए दाना लिए आता हूँ।
किया था वादा शाम ढले आने का,
वादा निभाने की खातिर दौड़ा आता हूँ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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