गांव , शहर और राजनीतिक असर ।
जय प्रकाश कुंअर
भारतवर्ष की सम्पूर्ण आबादी गांवों और शहरों में मिला कर रहती हैं ।एक समय था जब देश की आबादी के बहुसंख्यक लोग गांवों में रहते थे । गांव के लोग खेती बारी से अपना जीविकोपार्जन करते थे और आपस में मिल जुल कर खुशहाल जीवन व्यतीत करते थे । शहर में ज्यादातर वही लोग रहते थे जो या तो नौकरी पेशा में थे या फिर कोई व्यवसाय करते थे । आजादी के बाद स्वतंत्र भारत का यह नक्शा धीरे-धीरे बदलने लगा । शहरों में और उसके आसपास कल कारखाने तथा मिल फैक्ट्रीयां लगनी शुरू हुई और काम तथा रोजगार के अवसर मिलने लगे । इसके चलते मानव संसाधन शक्ति धीरे धीरे गांव के तरफ से शहरों के तरफ खिसकनी शुरू हुई । अब गांव खाली होने शुरू हो गये । यह क्रम लगातार चलता रहा और आज स्थिति यह है कि छोटे बड़े हरेक शहर में जन संख्या खचाखच भरी हुई है । विकास केवल शहरों और आस पास तक ही सीमित रह गया और इसके चलते गांव प्रायः खाली हो गए हैं । और इसका सबसे बड़ा खराब असर खेती बाड़ी पर पड़ा है। जिन गांवों में कभी कोई खेत खाली नहीं दिखते थे वहां आज वर्षों से खेत खाली पड़े हुए हैं और उनमें जंगल झाड़ उपज आया है ।
आजादी के बाद देश का अपना संविधान लागू हुआ और उसमें समय-समय पर देश की आबादी का वर्गीकरण किया गया , जैसे अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति , पिछड़ा वर्ग , अति पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग अथवा उच्च वर्ग आदि । इन सब के चलते मानव विभाजन समाज में पैदा हो गया । एक और बात आजादी के बाद जो परिलक्षित हुआ सो है देश में राजनीतिक बदलाव और देश का राजनीतिकरण । देश में गांवों में ग्राम पंचायत स्तर से लेकर देश में उच्चतम स्तर राज्य सभा और लोक सभा तक अनगिनत सरकारी संस्थाओं का निर्माण किया गया । इसमें भी अनेक राजनीतिक पार्टियों का समावेश हुआ । इन सबके चलते भी राजनीतिक रूप से मानव का विभाजन आज दिखाई पड़ रहा है ।
आज स्थिति यह है कि वोट की राजनीति के चलते और पावर में बने रहने के लिए शासन करने वाली पार्टीयां अनेक लोक लुभावन घोषणाएं चुनाव के पहले कर रही हैं और तरह तरह के अनुदान और खैरात अपने राज्य और देश के लोगों में बांट रही हैं । कहीं मुफ्त राशन दिया जा रहा है , तो कहीं घर घर के सदस्यों के बैंक खातों में पैसा भेजा जा रहा है , तो कहीं मुफ्त में बिजली दी जा रही है , तो कहीं अनेक कम कीमत पर खाना बनाने वाले गैस सिलेंडर को मुहैया कराया जा रहा है । इस तरह से खैरात बांटने का असर निश्चित रूप से देश के आर्थिक स्थिति पर पड़ता है । जिसकी भरपाई के लिए जनता पर अनेक तरह के टैक्स लगाए जा रहे हैं और उनकी ज्यादातर वसुली नौकरी पेशा वालों और व्यवसायी वर्ग से की जा रही है । गांव देहात के लोगों को बहुत सारी सुविधाएं मुफ्त प्रदान की जा रही है , क्योंकि वहां वोट बेंक ज्यादा है और लोग आसानी से बरगलाए जा सकते हैं ।
इन सब मुफ्त सुविधाओं के चलते आज स्थिति यह है कि गांव देहात में कोई खेती बाड़ी का काम नहीं करना चाहता और ज्यादातर नेताओं के आगे पीछे चलना पसंद करता है । आज गांव देहात में कोई भी मजदूरी करना नहीं चाहता और कहता है कि सरकार तो मुफ्त खिला रही है तो मजदूरी किस लिए करना है । कुछ खेतिहर लोग खेती स्वयं करना भी चाहते हैं तो सरकार द्वारा जल संसाधन का समुचित प्रबंध नहीं देखा जाता है । बार बार सुखा और बाढ़ से वे अलग त्रस्त रहते हैं । इन सब कारणों से आज गांव देहात में खेत खाली पड़े हुए हैं और जंगल झाड़ उपज आया है ।
कभी कृषि प्रधान कहा जाने वाले देश की आज यह स्थिति है ।
आज किसान दुखी हैं और आज इस देश में कोई अगर सही मायने में सुखी है तो वह है नीचे से लेकर उपर तक राजनीतिक वर्ग । और इसीलिए आज गांव देहात से लेकर शहर तक हर कोई नेता बनना चाहता है। इस पेशे में रोजगार वंशगत चलते रहने की भी कुछ हद तक गारंटी रहती है । अगर ऐसा नहीं भी हुआ तो एक पीढ़ी का नेता ही इतना कमा कर रख देगा कि अगली कुछ पीढ़ियों को सोचना नहीं पड़ेगा । आज राजनीति में भी इमानदार नेताओं की कमी महसूस हो रही है । विभिन्न पार्टियों के नेता ही सब उजागर कर देते हैं कि किस पार्टी में कितने भ्रष्ट और दागीदार नेता हैं । अगर भारतीय समाज और राजनीतिक माहौल इसी प्रकार आगे चलता रहा तो अन्न का भंडार कहे जाने वाला यह देश एक दिन अन्न संकट से जूझता दिखाई पड़ेगा । गांव देहात अविकसित रह जायेंगे और विरान हो जायेंगे । मात्र पक्का सड़क बन जाना ही गांव का विकास नहीं होता , वहां कुछ मिल फैक्ट्री और काम के संसाधनों का विकास आवश्यक है । गांव में रह कर कोई कुछ करना नहीं चाहेगा और मुफ्त में मिलने की हरदम उम्मीद लगाए बैठे रहेगा ।और सभ्य तथा सुसंस्कृत कहलाने वाला यह देश भविष्य में अपराधियों ,गुन्डों , मवालियों , लुटेरों , बाहुबलियों और अराजक तत्वों से भर जाएगा और हमारी सभ्यता धीरे-धीरे नष्ट हो जायेगी । अभी भी समय है और अगर इस देश की जनता , बुद्धिजीवी तथा सभी दलों के राजनीतिज्ञ एक नेक और इमानदार पहल करें तो इसे रोका जा सकता है ।
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