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बिना निवन्धन के चल रहे कोचिंग बंद हो - प्रेम कुमार

बिना निवन्धन के चल रहे कोचिंग बंद हो - प्रेम कुमार

पटना- सुवे कुकुरमुत्तों की तरह उग आये है कोचिंग संस्थान लुटे जा रहे है छात्र नौजवान इस पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुये प्रेम यूथ फाउंडेशन के संस्थापक गांधीवादी प्रेम जी ने बिना निवन्धन के चल रहे कोचिंग संस्थानों को बंद कराने की माँग सरकार से की है । उन्होंने बताया कि बिहार के स्कूलों-कालेजों में पठन-पाठन में सुधार के हो रहे उपायों के तहत अब कोचिंग के लिए सरकार ने नया फरमान जारी किया है।इसके लिए 2010 में ही बने कानून को अमलीजामा पहनाने बिहार कोचिंग संस्थान (नियंत्रण और विनियमन) अधिनियम 2010 के तहत 13 साल बाद नियमावली आई है। सुझावों पर विचार करने के बाद विभाग इसे लागू कर देगा।
जिले में कोचिंग संस्थानों को निबंधन प्रमाणपत्र देने के लिए प्राधिकार गठित किए जाएंगे। इसके अध्यक्ष जिलाधिकारी व सदस्य सचिव जिला शिक्षा पदाधिकारी होंगे। एसपी और अंगीभूत कॉलेज के प्राचार्य इसके सदस्य होंगे। मानदंडों पर खडा उतरने पर आवेदन के 30 दिनों के अंदर पंजीकरण प्रमाणपत्र कमेटी देगी। मानक पर सही नहीं उतरने पर आवेदन खारिज कर दिया जाएगा। आवेदन शुल्क पांच हजार होगा। कोंचिंग संस्थान की प्रत्येक कक्षा का न्यूनतम कॉरपेट एरिया 300 वर्गफुट होगा। बेंच-डेस्क-कुर्सी इस प्रकार होगी कि हर छात्र को कम-से-कम एक वर्गमीटर स्थान प्राप्त हो। संस्थान में पेयजल तथा लड़के-लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय होंगे। पर्याप्त रोशनी होगी। तीन साल तक पंजीकरण मान्य होगा, उसके बाद तीन हजार के शुल्क पर उसका नवीनीकरण होगा। कोचिंग संस्थानों की ओर से किसी मानदंड का उल्लंघन किया जाता है और वह पहली बार जांच में आया है तो उसे 25 हजार का जुर्माना देना होगा। दूसरी बार कोई गलती पाये जाने पर एक लाख का जुर्माना लगेगा। इसके बाद भी कोई गलती पकड़ी जाती है तो संस्थान का पंजीकरण रद्द होगा।


शिक्षा विभाग की कमान जब से कड़क आईएएस केके पाठक ने संभाली है तब से लगातार वे सुर्खियों में हैं. बिहार की शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए केके पाठक एक के बाद एक नए-नए फरमान जारी कर रहे हैं. कोचिंग संस्थानों पर नकेल कसी गई है. केकेपाठक के आदेश के अनुसार, अब राज्यभर में कोचिंग संस्थान सुबह के 9 बजे से लेकर शाम के 4 बजे तक संचालित नहीं होंगे. 9 बजे से पहले या 4 बजे के बाद कोचिंग संस्थान चलाने के लिए संचालक स्वतंत्र हैं.


अपर मुख्य सचिव केकेपाठक के आदेश के बाद शिक्षा विभाग ने बिहार कोचिंग संस्थान (नियंत्रण और विनियमन) नियमावली 2023 में यह भी तय कर दिया गया है कि कोचिंग संस्थान यह सुनिश्चित करेगा कि सरकारी स्कूलों की संचालन अवधि में वह छात्र-छात्राओं को नहीं पढ़ाएगा. कोंचिंग की कक्षाओं की समय तालिका किसी भी तरह से सरकारी स्कूलों-संस्थानों के समय के साथ टकराव नहीं होगा. जिलाधिकारी को यह शक्ति होगी कि वह सरकारी स्कूल-कॉलेजों के समय को ध्यान में रखते हुए कोचिंग संस्थानों का समय निर्धारण करेंगे. छात्रों के शुल्क में कटौती भी जिलाधिकारी कर सकते हैं.


नियमावली के अनुसार यदि किसी संस्थान को दो बार दंडित किया जा चुका हो, तो प्राधिकार उसे सुनवाई का पर्याप्त मौके देने के बाद पंजीकरण रद्द कर देगा. प्राधिकार रद्द संस्थान में नामांकित छात्रों को अन्य संस्थान में भेजने को सक्षम होगा. बावजूद संस्थान पढ़ाना जारी रखता है तो डीएम सभी चल संपत्तियों के साथ ऐसे परिसरों को जब्त करने के लिए सक्षम होंगे.


जिला पदाधिकारी अनुमंडल स्तर पर जांच समिति गठित करेंगे. इसके अध्यक्ष अनुमंडल पदाधिकारी होंगे. कोई भी शिकायतकर्ता अनुमंडल पदाधिकारी के समक्ष कोचिंग संस्थानों के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकता है. जांच समिति 30 दिनों के अंदर जांच पूरी करेगी और अपनी अनुशंसा जिलाधिकारी को करेगी.


बता दें केकेपाठक के फरमान को लेकर जिला अधिकारियों को पत्र जारी किया गया है. पत्र में साफ तौर पर 9 से 4 बजे के बीच कोचिंग संस्थान नहीं चलाने का आदेश दिया गया था. इसके साथ ही दो अन्य आदेश भी जारी किये गए . जिसके अनुसार, कोई भी कोचिंग संस्थान सरकारी या गैर सरकारी स्कूल के टीचर या कर्मी को अपने यहां टीचिंग फैकल्टी में नहीं रख सकते हैं. वहीं, तीसरे आदेश के मुताबिक, संचालन मंडल में यदि किसी कर्मी या पदाधिकारी को रखा गया है तो, इसे लेकर डीएम को सूचित करना होगा. मालू हो कि केके पाठक ने दायित्व संभालने बाद स्कूलों में ससमय उपस्थिति सुनिश्चित करने के साथ छात्रों भी भी 75% उपस्थिति अनिवार्य किया है। 50% से कम उपस्थिति होने पर नामांकन रद्द करने का फररमान है। विभाग के अफसरों चार घंटे आफिस और चार घंटे फील्ड में जाकर निरीक्षण कर नियमित रूप से विभाग को रिपोर्ट करने कहा गया है। सभी हाई स्कूलों में 20-20 कम्युटर लगाने के साथ लैब स्थापित करने की हिदायत दी गयी है। डीएम को स्कूलों में पठन-पाठन की मानिटरिंग करने का दायित्व दिया गया है। सफाई के लिए आउटसोर्सिंग की गयी है। निकट भविष्य में शिक्षकों को डायरी सुलभ कर अध्यापन का दैनिक लेखा-जोखा दर्ज कराने की तैयारी है। स्कूलों में पढाई की रूटिन देकर इसका अनुपालन सुनिश्चित करने कहा गया है।मिड-डे मिल पर निगरानी के साथ खाली बोरा बेचकर प्रति बोरा 20₹ सरकारी खजाने में जमा करने कहा गया है। 75% उपस्थिति होने पर ही मैट्रिक का की परीक्षा में बैठने की अनुमति का फरमान हो।सितम्बर से चार महीने की घोषित छुट्टी में कटौती कर शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत 1-5 तक 200 कार्य दिवस और 6-8 तक के स्कूलों 220 कार्य दिवस की स्धिति बनाने का फरमान है। केके फाठक के फरमानों से शिक्षकों के बीच हड़कंप मच गया है। स्कूलों की तस्वीर बदली है।
वहीं कालेजों में अलग कोहराम है ।प्रदेश के गिने-चुने शहरी कालेजों में शिक्षकों के रहने से पढाई होने लगी है।परंतु अधिसंख्य कालेजों में क्लासवार और विषयवार शिक्षकों की भारी कमी के कारण पढाई से ज्यादा उपस्थिति को बल मिलने लगा है। इधर राजभवन और शिक्षा विभाग के बीच अधिकार-युद्ध छिडने से पढाई में सुधार और परीक्षा नियमित करने की पहल गौण होती दिख रही है। विश्वविद्यालयों की स्वायत्ता को लेकर राजभवन से तलवार खिंच गयी है वही शिक्षक- कर्मचारियों के वेतन मद में दी जा रही सहायता के बदले सरकार की ओर से फरमान जारी कर हिसाब-किताब देखने-मांगने का अधिकार की तीर चलने का सिलसिला चल पड़ा है।
बिहार में शिक्षा की बदहाली समाप्त करने का आखिर दर्द कौन लेगा? सरकार विश्वविद्यालयों की मुकदमे से परेशान है। राजनीति ताकत पसंदीदा कुलपति-प्रतिकुलपति लगी है। शिक्षक-कर्मचारियों के खाली पद भरने की अनिवार्यता नहीं दिख रही। वोकेशनल शिक्षा और पीजी की पढाई का विस्तार जितना जरूरी है उतना ही जरूरी है इसके लिए मौलिक सुविओं की गारंटी।अभी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यवस्था कौन सोच रहा।इसके लिए प्यास भी नहीं होता दिख रहा।आपकी शिक्षा में सुधार के संबंध में क्या राय है? राजभवन और सरकारके बीच टकराव से क्या सुधार होगा? कालेजों में शिक्षकों की कमी तत्काल कैसे दूर हो? अतिथि शिक्षकों का अलग मसला है। उनकी सेवा नियमित करने का क्या उपाय नहीं होना चाहिए? आखिर जटिल हो रही समस्या का निदान कैसे होगा? पटना विश्वविद्यालय को छोड़कर अन्य सभी विश्वविद्यालयों के डिग्री कालेजों मे भी इंटर की पढाई हो रही और परीक्षा बोर्ड ले रहा। वित्तरहित शिक्षका नीति समाप्त कर अनुदाने देने का सिलसिला क्यों और कैसे बाधित है? क्या यह सुशासन का एजेंडा नहीं होना चाहिए?
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