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व्याख्यान में सभा के अध्यक्ष ही प्रथम संबोध्य, उच्चारण और भाषा हो सुस्पष्ट |

व्याख्यान में सभा के अध्यक्ष ही प्रथम संबोध्य, उच्चारण और भाषा हो सुस्पष्ट |

  • साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुई 'संभाषण-कार्यशाला'।
सभाओं में यह प्रायः ही देखा जाता है कि व्याख्यान देने वाले वक्ता, किसे और कैसे संबोधन करें यह भी नहीं जानते। सौ में निन्यानवे वक्ताओं को, व्याख्यान का व्याकरण नहीं पता होता। किसी भी सभा में व्याख्यान का आरंभ करते हुए, वक्ताओं को सब से पहले सभा के अध्यक्ष को ही संबोधित करना चाहिए, भले ही वह कोई कनीय व्यक्ति ही क्यों न हो। अध्यक्ष ही प्रथम संबोध्य होते हैं। यदि सभा में महामहिम राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल की उपस्थिति हो, तो अपवाद स्वरूप महामहिम को प्रथम-संबोधन प्राप्त होता है।
यह बातें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा आहूत हिन्दी पखवारा के १३वें दिन बुधवार को आयोजित 'संभाषण-कार्यशाला' में अपना व्याख्यान देते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने श्याम-पट पर विधिवत कक्षा लेते हुए, व्याख्यान-कौशल के विविध पक्षों, उच्चारण, भाषा, पुनरावृति-दोष, स्वर, गति-यति, समय-नियोजन आदि पर विस्तारपूर्वक और सोदाहरण चर्चा की और बताया कि किस प्रकार व्याख्यान को रोचक और श्रवणीय बनाया जा सकता है। कार्यशाला में सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा पूनम आनन्द, डा ध्रुव कुमार, आराधना प्रसाद, डा पुष्पा जमुआर, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, विभा रानी श्रीवास्तव, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, कृष्ण रंजन सिंह, तलत परवीन, चंदा मिश्र, ई अशोक कुमार, कृष्ण रंजन सिंह, सदानन्द प्रसाद, मीरा श्रीवास्तव, अनुभा गुप्ता, नीरव समदर्शी, दिगम्बर जायसवाल, बाँके बिहारी साव, डौली कुमारी, कुणाल कौशल आदि प्रतिभागी उपस्थित थे ।
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