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हिन्दी काव्य-साहित्य में तुलसी के बाद भारतेन्दु ही लोकनायक :-डा अनिल सुलभ

हिन्दी काव्य-साहित्य में तुलसी के बाद भारतेन्दु ही लोकनायक :-डा अनिल सुलभ

  • जयंती पर आयोजित हुई लघुकथा-गोष्ठी, ललन पाण्डेय की पुस्तक 'वैदिक विभूतियों का सान्निध्य' का हुआ लोकार्पण ।

पटना, ९ सितम्बर। हिन्दी के काव्य-साहित्य में, महाकवि तुलसी दास के पश्चात लोक-जागरण के लिए जिसे 'लोक-नायक' कहा जा सकता है, उस महान साहित्यकार का नाम भारतेंदु हरिश्चन्द्र है। आधुनिक हिन्दी को, जिसे 'खड़ी-बोली' भी कहा गया, नया रूप गढ़ने में भारतेंदु का अवदान अद्वितीय ही। ये भारतेंदु ही हैं, जिन्होंने खडीबोली को अंगुली पकड़कर चलना सिखाया। इसीलिए हिन्दी साहित्य के इतिहास के इस युग को 'भारतेंदु-युग' के रूप में स्मरण किया जाता है। भारतेंदु के नाटक 'सत्य हरिश्चन्द्र' और 'अंधेर-नगरी' सौ साल बाद भी प्रासंगिक बने हुए हैं। उनके नाटक जन-मानस को झकझोरते और आंदोलित करते हैं।
यह बातें शनिवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, भारतेंदु जयंती की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि अद्भुत प्रतिभा के इस कवि ने मात्र ३५ वर्ष की अपनी कुल आयु में जो कमाल कर दिया वह हिन्दी साहित्य के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है।
इस अवसर पर, वरिष्ठ साहित्य-सेवी डा ललन पाण्डेय की पुस्तक 'वैदिक विभूतियों का सान्निध्य' का लोकार्पण भी किया गया। पुस्तक पर अपना विचार व्यक्त करते हुए लेखक ने कहा कि वर्तमान समय में वैदिक साहित्य पर अनेक भ्रांतियाँ व्याप्त हो गयीं है। लोकार्पित पुस्तक के माध्यम से उन भ्रांतियाँ को दूर करने की चेष्टा की गयी है।
समारोह की मुख्य अतिथि तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत-विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रो दीप्ति शर्मा त्रिपाठी ने कहा कि भारतेन्दु का समय खड़ी-बोली का संधि-काल था। उस समय हिन्दी-पट्टी की लोक-भाषाओं के बीच से एक नयी भाषा विकसित की जा रही थी। भारतेन्दु ने अपनी भाषा के संदर्भ में यह उक्ति बड़ी सार्थक है कि "निज भाषा ऊन्नति अहै सब ऊन्नति को मूल"
सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष जियालाल आर्य ने कहा कि भारतेन्दु खड़ी-बोली के जनक माने जाते हैं। उन्होंने जो कविताएँ लिखीं, उनमे प्रेम, ऋंगार और प्रकृति भी है और समाज और देश भी। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, सुप्रसिद्ध फ़िल्मकार किरण कांत वर्मा, लेखक ललन पाण्डेय आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित लघुकथा गोष्ठी में सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने 'अंत्येष्ठि', डा पूनम आनंद ने 'कमाई', पुष्पा जमुआर ने 'दो ध्रुवों पर', कमल किशोर 'कमल' ने 'नींद', अनुभा गुप्ता ने 'निष्ठुर' तथा अरविंद कुमार वर्मा ने 'जीवन से लगाव' शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रबंधमंत्री कृष्णरंजन सिंह ने किया। सम्मेलन के अर्थ मंत्री प्रो सुशील कुमार झा, सदानन्द प्रसाद, डा जनार्दन पाटिल, डा पुरुषोत्तम कुमार, डा प्रेम प्रकाश, महफ़ूज़ आलम, डौली कुमारी, अमित कुमार सिंह, दुःखदमन सिंह, दिगम्बर जायसवाल, अमित कुमार सिंह, बद्री प्रसाद साह, अमन वर्मा, रौशन राज, राहूल कुमार,अभिषेक कुमार, विशाल कुमार आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे। कल पखवारा के १०वें दिन ३बजे से राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह जयंती एवं कथा-कार्यशाला आयोजित है, जिसमें प्रतिभागियों को कथा-साहित्य के विविध रूपों के परिचय के साथ रचना-प्रक्रिया का प्रशिक्षण दिया जाएगा। प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र भी दिए जाएंगे ।
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