हिंदी भाषा बड़ी मधुर है मनोभाव की बोली है।
संवाद संप्रेषण में अद्भुत है जनता की हमजोली है।।प्रेम करुणा विस्मय उद्विग्नता सभी भाव में कह सकते।
क्रोध वात्सल्य ममता की बातें इसके बिना क्या कह सकते।
खेत खलिहान चौक चौपाल हिंदी ही सबको भाती है।
व्यापार विपणन के लिए सभी एजेंसी इसकी शरण ही आती हैं।
इतनी सुलभ इतनी सहज सरस है जैसे शक्कर की कोई बोरी है।
अल्हड़ सा बहाव है इसका आंचलिक भाषाओं की सहेली है।
शुद्ध, मूल और तत्सम शब्दावली पर भी हम आयेंगे।
पर पहले बोलचाल की भाषा में ही इसे आगे बढ़ाएंगे।
कठिन डगर है; मग में कंकड़, शूल सा चुभना सामान्य बड़ा।
अपना लिया जब गैर को हमने, ये तो फिर भी मातामयी सदा।
जन जन ने इसको अपनाया अब कार्यालय अपनाएंगे।
गुलामी की शब्दावली छोड़ देशज भाषा का मान बढ़ाएंगे।
- मनोज कुमार मिश्र
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