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मेरी उड़ान

मेरी उड़ान

मैं
उड सकता हूँ
दोनों बाहों को फैलाकर
धरती से आसमान तक
नदियों के पार
पर्वतों के ऊपर
नीलगगन तक।
मैं
उड़ सकता हूँ।


मैं
उड सकता हूँ
समुद्र के पार तक
क्षितिज के छोर तक
रात से भोर तक
सृष्टि के आर पार
मैं
उड़ सकता हूँ।


मैं
उड़ सकता हूँ
चंद्रमा की हद तक
पाताल की जड़ तक
समस्त ग्रहों के पार
जहाँ फैला है
विस्तृत आकाश।
मैं
उड़ सकता हूँ।


मैं
उड़ सकता हूँ
कल्पना की उड़ान पर
मन की लगाम पर
साँसों की डोर के साथ
विचारों की गहराइयों तक
मैं
उड सकता हूँ।


मैं
प्रतिदिन
हर पल उड़ता रहता हूँ
सुनहरे ख्वाबों के साथ
ऊँची उमंगों के साथ
उज्जवल भविष्य की तलाश में
धरती और आकाश में
कल्पना से हकीकत तक
जीवन से मृत्यु तक
सत्य से असत्य तक
आदि से अंत तक
देने के लिए
नई दिशा
अपनी कल्पनाओं को
नित नई ऋचाओं को
गरजने वाली काली घटाओं को
धूल भरी हवाओं को
धूप से कुम्हलाई लताओं को
रेगिस्तान में फैली मृगमरीचिकाओं को,
कुंठित विचारधाराओं को
मैं
उड़ता रहता हूँ।


मैं
प्रतिदिन
हर पल उडता रहता हूँ।
मेरी उड़ान का साक्षी है
यह विस्तृत आकाश
विचारों का सैलाब
धरती का कण कण
समुद्र में मंथन
जहाँ से मिलता है
मुझे असीमित प्यार
जुड़े हैं जहाँ
मेरी प्रेरणा के तार।

फिर भी
कभी-कभी
मेरी उड़ान में आ जाते हैं
अवरोध
देख कर
मानव का मानव के प्रति
अत्याचार
निरीह पशु पक्षियों का
खाद्य व्यापार
धरती पर बढ़ते
प्रदूषण का भार।


काश
मानव समझ पाता
मेरी उड़ान का सार
सदाचार
सबसे प्यार
प्रदूषण रहित बयार
पशु पक्षियों से प्यार
संतुलित व्यवहार
स्वस्थ परिवार
सुखी संसार।

डॉ अ कीर्ति वर्धन
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