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"निःशब्द मुलाक़ात"

"निःशब्द मुलाक़ात"

' कमल ' क्या बयां करे वो उनसे पहली मुलाकात,
लब थे खामोश पर हमारी नजरें कर रही थी बात।


जब हुई मुलाकात, वो पल था कितना सुहाना,
वो मुलाक़ात , मानों थी ख्वाबों का अफसाना।


ना था हँसी-मजाक और ना ही बहुत बातें प्यारी,
दिल के क़रीब वो पल, आज भी वो यादें सारी।


वो दिलकश मुस्कराहट तेरी, यह आँखों का जादू,
मानों कायनात भी कह रही थी दोनों को मिला दू।


यादगार उन पलों, की आज भी है हमको तलब,
निःशब्द उस मुलाक़ात पर लिख दी पूरी किताब।


स्वरचित पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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