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दुर्गा बनो

दुर्गा बनो

ऋचा श्रावणी
कब तक आंसू बहाओगी
अपने चीर हरण के लिए माधव को बुलौगी
वो द्रौपदी थी जिनके लिए केशव आया
तुम्हारी रक्षा के लिए कोई आगे नहीं आयेगा
सात फेरे लेकर भी जीवनसाथी
तुम्हे बीच बाजार में बेच जाएगा
पत्रकार मजे लेंगे और नेता चुटकी
क्योंकि तुमने क्रोध में नहीं तानी भृकुटी
अब बात विचार नहीं है करना
अब सीधे फैसला सुनाना है
महिषासुर जैसे असुरो को
सलाखों के पीछे नहीं
बल्कि भरे समाज में वध कर डालना है
बात जब धर्म और प्रतिष्ठा की आए
तब सब खरे हो जाए
शस्त्र हो अब हर स्त्री का गहना
अब सोने की चूड़ियां नहीं पहनना
आत्मरक्षा का प्रशिक्षण अनिवार्य करे
ताकी हर बेटी मान निर्वस्त्र ना हो पाए
निर्भय हो जब चले पथ पर
असुर भी भाग चले इनके तर्ज़ से
अब समाज नहीं खुद को बदलना होगा
यह युद्ध अब अकेले ही लरना होगा
जय भवानी
ऋचा 
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