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देवानंद के काले कोट पहनने पर आखिर कोर्ट को क्यों लगानी पड़ी थी पाबंदी?देव आनंद राजनीति में भी आजमा चुके हैं किस्मत|

26 सितंबर को शताब्दी वर्ष के अवसर पर 

देवानंद के काले कोट पहनने पर आखिर कोर्ट को क्यों लगानी पड़ी थी पाबंदी?देव आनंद राजनीति में भी आजमा चुके हैं किस्मत|

अपने हुनर, अदाकारी और रूमानियत का जादू बिखेरने वाले सदाबहार अभिनेता देवानंद ने बॉलीवुड में करीब छह दशकों तक दर्शकों के दिलों पर राज किया.
बॉलीवुड में कितने हीरो आए और गए, लेकिन शायद ही कोई लीजेंड एक्टर देव आनंद को टक्कर दे पाया. वो अपने दौर के बेहतरीन एक्टर्स में से एक थे. यही नहीं, देव आनंद की दीवानगी लोगों के सिर चढ़ कर बोलती थी. दर्शक उनकी एक झलक पाने के लिए बेरकरार रहते थे.
हर अंदाज़ के दीवाने थे लोग, अपने जमाने में देव साहब फैशन आइकन माने जाते थे. फ़िल्मों से लेकर लुक्स तक हर चीज़ में देव साहब का जलवा बरकरार था. यूं तो वे अपने डायलॉग डिलीवरी के खास अंदाज के लिए मशहूर थे, लेकिन एक और चीज़ थी जिस वजह से उन्होंने ख़ूब सुर्खियां बटोरी थीं. वो था उनका काला कोट और उसे पहनने का खास अंदाज़.

देव आनंद की सुपरहिट फिल्म 'काला पानी' थी. इस फ़िल्म के बाद देव आनंद ने व्हाइट शर्ट और ब्लैक कोट को इतना पॉपुलर कर दिया कि लोग उनको कॉपी करने लगे थे. लेकिन एक दौर ऐसा भी आया जब देव आनंद के पब्लिक प्लेस में काला कोट पहनने पर बैन लगाना पड़ा.

देव साहब को देखने के लिए लड़कियां छत से कूद पड़ती थीं|
शायद ही इतिहास में किसी अभिनेता के किसी लुक को दीवानगी की इतनी हद तक प्यार मिला हो. देव साहब के काले कोट में लड़कियों की ऐसी दीवानगी देखकर कोर्ट को इस मामले में दखल करना पड़ा और कोर्ट द्वारा देव आनंद के काले रंग के सूट पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था.

दरअसल देव साहब अकसर सफ़ेद शर्ट के साथ काला कोट पहनते थे और ब्लैक कोट में जो भी उन्हें देखता बस देखता ही रह जाता. ऐसा कहा जाता है कि जब भी वह काले रंग का सूट पहनकर सार्वजनिक रूप से बाहर निकलते थे, तब लड़कियां उन्हें देखकर पागल हो जाती थीं. उनके लिए कुछ भी कर गुजरने की कोशिश करती थीं. आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि कई लड़कियों ने इस काले कोट के कारण सुसाइड करने की कोशिश भी की. उन्हें काले कपड़ों में देखने के लिए लड़कियां अपनी छत से ही कूद पड़ती थीं. शायद ही इतिहास में किसी अभिनेता के किसी लुक को दीवानगी की इतनी हद तक प्यार मिला हो.

आखिरकार कोर्ट को काले कोट पर लगानी पड़ी पाबंदी
देव साहब के काले कोट में लड़कियों की ऐसी दीवानगी देखकर कोर्ट को इस मामले में दखल करना पड़ा और कोर्ट द्वारा देव आनंद के काले रंग के सूट पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था. ये पहली बार था जब कोर्ट को किसी एक्टर के पहनावे के मामले में दखल देना पड़ा.
बता दें कि देवानंद ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत सन 1946 में फिल्म 'हम एक हैं' से की थी, लेकिन फिल्म चल नहीं पाई. इसके बाद साल 1948 में आई 'जिद्दी' जिसने देव साहब को स्टार बना दिया.

वैसे तो इस सदाबहार एक्‍टर की कई कहानियां उनके फैन्‍स के बीच काफी मशहूर हैं, लेकिन आज आपको बताते हैं उनकी जिंदगी से जुड़ी चंद ऐसी बातें जिन्‍हें जानकर आप उनके और भी बड़े फैन हो जाएंगे.

  • देव आनंद ब्रिटिश सशस्त्र बलों की राजसी भारतीय नौसेना में शामिल होना चाहते थे, परन्तु किसी कारणवश उन्हें अस्वीकार कर दिया गया, जिसके चलते उन्होंने चर्चगेट स्थित सेना के सेंसर कार्यालय में 165 रु प्रति महीना वेतन पर काम करना शुरू कर दिया.
  • देव आनंद ने अशोक कुमार की फिल्में ‘अछूत कन्या’ और ‘किस्मत’ को देखकर अभिनेता बनने का फैसला किया. इन फिल्मों में अशोक कुमार की एक्टिंग से वो बहुत प्रभावित हुए थे.
  • देव साहब अपने ऑफिस के फोन खुद ही रिसीव करते थे. यही नहीं, फोन उठाकर वह बहुत प्यार से कॉलर को ग्रीट भी करते थे, फिर चाहे वो उनका फैन ही क्यों न हो.
  • उनकी याददाश्त इतनी अच्छी थी कि एक बार किसी का नाम सुन लेते थे, तो कभी भूलते नहीं थे.
  • अपने किसी भी दोस्त या फैमिली मेंबर के बर्थडे पर वह पर्सनल नोट के साथ फूल जरूर भेजते थे.
  • उनको अपने ऑफिस में हमेशा हल्की रोशनी पसंद थी। बता दें उनका ऑफिस, जिसका नाम पेंटहाउस था, मुंबई के पाली हिल, बांद्रा में स्थित था.
  • उनको पढ़ने का बहुत शौक था. यही कारण था कि वे किसी भी मुद्दे पर खुलकर बात कर लेते थे.
  • उनके आफिस में किताबों और इनकी फेवरेट स्क्रिप्ट्स का बड़ा कलेक्शन था. कहते हैं कि उनकी ऑफिस में जमीन से लेकर छत तक किताबों का कलेक्शन ही नजर आता था.
  • रात को देवानंद सिर्फ सूप पीना पसंद करते थे.
  • पर्दे पर 'हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया' गाने वाले देव साहब असल ज़िंदगी में न सिगरेट पीते थे और न ही शराब को हाथ लगाते थे. शायद इन्हीं आदतों की वजह से उनके खर्चे बहुत कम थे.
  • वह कभी किसी के बारे में बेवजह की गॉसिप नहीं करते थे. जब तक किसी इंसान के बारे में सारी बातें न जानते हों, वो उस इंसान पर कोई भी कमेंट करने से बचते थे.
  • अपनी पार्टीज में वे लोगों को हमेशा खुद ही फोन करके इन्वाइट करते थे.
  • उनके स्वभाव की इन्हीं खूबियों ने उन्हें इंडस्ट्री में बहुत प्यार दिया और फिल्ममेकिंग में उनकी बहुत मदद भी की.
  • एक्टिंग, संगीत के साथ-साथ किताबें पढ़ने के शौकीन थे देव आनंद, राजनेताओं के साथ थे अच्छे संबंध

देव आनंद का जन्म 26 सितंबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर जिले की शकरगढ़ तहसील में हुआ था। उनके पिता पिशोरी लाल आनंद एक सफल वकील और महात्मा गांधी के अनुयायी थे। चार भाइयों में तीसरे देव आनंद ने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से अंग्रेजी ऑनर्स के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वह अपने बड़े भाई चेतन के पास बंबई चले गए, जो फिल्मों में काम पाने की कोशिश कर रहे थे। दोनों भाई प्रगतिशील इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (आईपीटीए) से जुड़ गये। चेतन ने 1946 में 'नीचा नगर' बनाई और उद्घाटन कान फिल्म फेस्टिवल में ग्रां प्री जीता।

देव ने मुझे बताया कि जब उन्होंने सुना कि प्रभात फिल्म स्टूडियो के बाबू राव पई एक नई फिल्म के लिए कास्टिंग कर रहे हैं, तो वह सचमुच उनके कार्यालय में घुस गए और उन्हें पीएल संतोषी (निर्देशक राज कुमार संतोषी के पिता) द्वारा निर्देशित 'हम एक हैं' (1946) में मुख्य भूमिका मिल गई। फिल्म की शूटिंग के दौरान देव आनंद की दोस्ती गुरु दत्त नाम के एक युवा सहायक निर्देशक से हुई। उनके बीच इस बात पर सहमति हुई कि यदि उनमें से कोई भी सफल हो जाता है तो वह दूसरे की मदद करेगा। देव आनंद की पहली हिट 1948 में आई बॉम्बे टॉकीज की फिल्म 'जिद्दी' थी। जब वे 'विद्या' की शूटिंग कर रहे थे, तब उन्हें सुरैया से प्यार हो गया, जो उस समय एक टॉप स्टार थीं। 1949 में उन्होंने अपनी खुद की कंपनी नवकेतन (न्यू बैनर) लॉन्च की। गोगोल के 'इंस्पेक्टर जनरल' पर आधारित चेतन की 'अफसर' के बॉक्स ऑफिस पर असफल होने के बाद, देव आनंद ने क्राइम-थ्रिलर 'बाजी' (1951) के लिए गुरु दत्त को निर्देशक के रूप में चुना, जो एक बड़ी सफलता थी और इसके बाद चेतन आनंद द्वारा निर्देशित 'टैक्सी ड्राइवर' को एक और सफलता मिली।

संवाद अदायगी की तेज-तर्रार शैली और बोलते समय सिर हिलाने की प्रवृत्ति 'हाउस नंबर 44' (1955), 'पॉकेट मार' (1956), 'मुनीमजी' (1955), 'फंटूश' (1956), 'सीआईडी' (1956) और 'पेइंग गेस्ट' (1957) जैसी फिल्मों में देव आनंद की शैली बन गई। 1950 के दशक में उनकी फिल्में आम तौर पर थ्रिलर या रोमांटिक कॉमेडी होती थीं। 1955 में, उन्होंने 'इंसानियत' में दिलीप कुमार के साथ सह-अभिनय किया, जो उनका अब तक का एकमात्र दो-हीरो वाला प्रोजेक्ट था। उन्होंने राज खोसला द्वारा निर्देशित फिल्म 'काला पानी' (1958) के लिए बेस्ट एक्टर का अपना पहला फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। देव आनंद ने नूतन के साथ 'मंजिल' और 'तेरे घर के सामने', मीना कुमारी के साथ 'किनारे किनारे', माला सिन्हा के साथ 'माया', साधना के साथ 'असली-नकली', आशा पारेख के साथ 'जब प्यार किसी से होता है' और 'तीन देवियां' जैसी फिल्मों से रोमांटिक छवि हासिल की। जिसमें एसडी बर्मन का बेहतरीन संगीत था, उनके साथ तीन हीरोइनें कल्पना, सिमी गरेवाल और नंदा थीं। संयोग से, 'वन बॉय 3 गर्ल्स' नामक फिल्म का एक इंग्लिश वर्जन एक साथ शूट किया गया था लेकिन कभी रिलीज नहीं हुआ। वहीदा रहमान के साथ उनकी पहली रंगीन फिल्म 'गाइड' आर.के. नारायण के नोवेल पर आधारित थी। इसका अंग्रेजी वर्जन नोबेल पुरस्कार विजेता लेखक पर्ल एस बक के साथ सह-निर्मित किया गया था। फिल्म का हिंदी संस्करण उनके भाई विजय (गोल्डी) आनंद द्वारा लिखित और निर्देशित था।

'गाइड' के बाद 'ज्वेल थीफ' आई, जो एक हमशक्ल चोर के बारे में एक थ्रिलर थी और इसमें वैजयंतीमाला, अशोक कुमार, तनुजा, अंजू महेंद्रू, फरयाल और हेलेन थे और यह हिट रही। भाइयों का अगला सहयोग, 'जॉनी मेरा नाम' (1970), जिसमें देव आनंद की जोड़ी हेमा मालिनी के साथ थी, बॉक्स-ऑफिस पर सफल रही और आज भी इसे ऑल-टाइम क्लासिक माना जाता है। वह 'तीन देवियां' के अनौपचारिक निर्देशक थे, लेकिन देव के आधिकारिक निर्देशन की शुरुआत वहीदा रहमान और जाहिदा अभिनीत प्रेम पुजारी के साथ थी। पूरे यूरोप और भारत में फिल्माया गया, युद्ध-सह-जासूसी नाटक उस समय असफल रहा था, लेकिन इसके दोबारा प्रसारण में इसे पसंद किया गया, खासकर एसडी बर्मन के गीतों के कारण।

इसके बाद उन्होंने कई और हिट फिल्मों में अभिनय किया, जिनमें मोहन कुमार की 'अमीर गरीब', प्रमोद चक्रवर्ती की 'वारंट' और मेरी 'मन पसंद' शामिल हैं। 1990 के दशक से, देव बॉक्स ऑफिस नतीजों के प्रति उदासीन होकर फिल्में बनाते रहे और 2000 तक उनका वास्तविकता से नाता टूट गया। लेकिन उन्होंने फिल्में बनाना कभी बंद नहीं किया। वह पांच दशकों से अधिक समय तक चहेते, प्रशंसित व्यक्ति और एक बहुत बड़े स्टार थे। उनके बारे में एक अनौपचारिक, मैत्रीपूर्ण व्यवहार था जिससे एक अजनबी भी सहज महसूस करता था।

उन्हें किताबें बहुत पसंद थीं और उन्हें म्यूजिक का भी शौक था और उनके पास घर और कार्यालय दोनों जगह एक बड़ा कलेक्शन था। वह हिंदी लेखक अज्ञेय, इरविंग स्टोन, राजा राव, के.ए. अब्बास, मुल्क राज आनंद, कमला दास, मनोहर मालगांवकर और आर.के. नारायण जैसे कई साहित्यकारों से अच्छी तरह परिचित थे। देव साब को संगीत की बहुत अच्छी समझ थी और नवकेतन के संगीत स्कोर इसका प्रमाण हैं। उन्हें फिल्में देखना बहुत पसंद था और शुरुआत में वे लेटेस्ट हॉलीवुड रिलीज देखने के लिए सिनेमाघरों में जाते थे, लेकिन बाद में गोल्डी के प्रीव्यू थिएटर केटनाव में प्राइवेट स्क्रीनिंग में फिल्में देखते थे। उन्हें यात्रा करना बहुत पसंद था और पहाड़ों से उनका विशेष रिश्ता था। वे दो स्थान जिन्हें वह वास्तव में पसंद करते थे, लंदन और महाबलेश्वर थे, जहां वे नियमित रूप से जाते थे, क्रमशः लंदनडेरी और फ्रेडरिक नामक एक ही होटल में ठहरते थे। आम राय के विपरीत, देव साहब को खाना पसंद था, लेकिन संयमित मात्रा में और उनके पसंदीदा कॉन्टिनेंटल, विशेष रूप से सलाद और उनकी मूल पंजाबी थी। अपनी विदेश यात्राओं के दौरान वह अक्सर अपने कपड़ों का चयन करते थे और इस बात का ध्यान रखते थे कि वे क्या पहनते हैं।

उनके जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, जयप्रकाश नारायण, जगजीवन राम, कृष्णा मेनन, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और राजीव गांधी जैसे नेताओं के साथ मधुर संबंध थे। नेपाल के राजा महेंद्र, सिक्किम के चोग्याल और भूटान के राजा, साथ ही कई भारतीय महाराजा उनके मित्र थे। शर्ली मैकलेन एक खास मित्र थी।
देव आनंद राजनीति में भी आजमा चुके हैं किस्मत|
14 सितम्बर, 1979 का दिन था। उस वक्त के बंबई में ताजमहल होटल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई। वो इंदिरा गांधी की लगाई इमरजेंसी के बाद वाला दौर था जब जनता पार्टी का प्रयोग भी विफल हो चुका था। दोनों पक्षों से नाराज कुछ लोगों ने मिलकर नए राजनीतिक दल 'नेशनल पार्टी' बनाने की घोषणा की। इस पार्टी के अध्यक्ष थे देव आनंद।

पार्टी के 16 पन्नों वाले घोषणा पत्र में कहा गया, "इंदिरा की तानाशाही से त्रस्त लोगों ने जनता पार्टी को चुना, लेकिन निराशा हाथ लगी। अब यह दल भी टूट चुका है। जरूरत है, एक स्थायी सरकार दे सकने वाली पार्टी की, जो थर्ड आल्टरनेटिव दे सके। नेशनल पार्टी वह मंच है जहां समान विचार वाले लोग साथ आ सकते हैं।"

इस पार्टी में वी शांताराम, विजय आनंद, आईएस जौहर, जीपी सिप्पी समेत कई फिल्मी हस्तियां जुड़ गईं। पार्टी ने लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया, रैलियां शुरूं हो गईं, भीड़ जुटने लगी। लेकिन धीरे-धीरे ये बात फैलने लगी कि फ़िल्म उद्योग के लोगों को इसका नुक़सान बाद में उठाना पड़ेगा। एक-एक कर ज्यादातर लोगों ने साथ छोड़ दिया।

इस तरह देव आनंद का राजनीतिक सपना और पार्टी दोनों ख़त्म हो गई। लेकिन फिल्मी हस्तियों और राजनीति का ये पहला और आखिरी मेल नहीं था। आज़ादी के पहले से ही कलाकारों का भारतीय राजनीति से नाता रहा है।
देव आनंद के सौवें जन्मदिन से पहले मुंबई में जुटे दीवाने, जैकी श्रॉफ, वहीदा ने सुनाईं सुनहरी यादें
दिग्गज अभिनेता देव आनंद का इस महीने 26 तारीख को सौवां जन्मदिन है। ऐसे में इस मौके को और भी ज्यादा खास बनाने के लिए फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन ने 'देव आनंद@100 फॉरएवर यंग' का आयोजन किया गया है।

करोड़ों दिलों पर राज करने वाले हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता देव आनंद का इस महीने 26 तारीख को सौवां जन्मदिन है। ऐसे में इस मौके को और भी ज्यादा खास बनाने के लिए फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन ने 'देव आनंद@100 फॉरएवर यंग' का आयोजन किया। इस दो दिवसीय यह समारोह 23 और 24 सितंबर को 30 शहरों और 55 सिनेमाघरों में आयोजित किया गया है। जानकारी के मुताबिक फाउंडेशन ने देव आनंद की चार फिल्मों 'सीआईडी' (1956), 'गाइड'(1965), 'ज्वेल थीफ' (1967) और 'जॉनी मेरा नाम' (1970) के नए डिजिटाइज्ड प्रिंट पुणे स्थित भारतीय फिल्म संग्रहालय से इसी सिलसिले में हासिल किए हैं।

'जॉनी मेरा नाम' और 'गाइड' की हुई स्क्रीनिंग
इस बीच जुहू में 'देव आनंद@100 फॉरएवर यंग' फिल्म महोत्सव हाउसफुल रहा। पीवीआर जुहू में फिल्म 'जॉनी मेरा नाम' और 'गाइड' की स्क्रीनिंग रखी गई। इस मौके पर एफएचएफ के निदेशक शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर, अभिनेत्री वहीदा रहमान, अभिनेता जैकी श्रॉफ और निर्देशक श्रीराम राघवन मौजूद रहें।

जैकी श्रॉफ और वहीदा रहमान ने सुनाई सुनहरी यादें
इस खास मौके पर सदाबहार अभिनेता को याद करते हुए जैकी श्रॉफ, वहीदा ने देव आनंद से जुड़ी सुनहरी यादें को सबके साथ साझा किया। बीते दिनों खबर आई थी कि दिवंगत अभिनेता के जुहू स्थित बंगले को भारी कीमत पर बेचा जाएगा। मगर देव आनंद के भतीजे और फिल्म मेकर केतन आनंद ने सुपरस्टार के बंगले को 400 करोड़ रुपये में बेचे जाने के सभी दावों को खारिज कर दिया था।

दिल का दौरा पड़ने से हुआ था निधन
देव आनंद को उनकी बेहतरीन फिल्मों के लिए चार बार फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाजा गया था। हिंदी सिनेमा में उनके योगदान के लिए साल 2001 में उन्हें भारत सरकार ने प्रतिष्ठित पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें सिनेमा का सबसे बड़ा सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्रदान किया गया। तीन दिसंबर 2011 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनका निधन हो गया था। 

दिव्य रश्मि भारत के महान अदाकार देव आनन्द साहब के चरणों में नमन एवं अभिनन्दन करती है |
साभार इंटरनेट के माध्यम से संग्रहित आलेख | 
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