हमारे भारत की पहचान
मार्कण्डेय शारदेयःछहों ऋतुओं का क्रीड़न-कन्दु,
हमारे भारत की पहचान।
जहाँ किशोरी सुरबाला –सी, उषा रचाती लास्य,
राग-रंजिता होकर मधुमय छिटकाती है हास्य,
पेड़ –पौधे होते रसवान,
सचर का खुद कर लो अनुमान,
हमारे भारत की पहचान।
मानवीय व्यवहार हमारा, एक मात्र है ध्येय,
झूठा मानवता का अभिनय, यहाँ नहीं अभिनेय,
सिखाता है विनिमय पवमान,
सृष्टि से अब तक बहता ज्ञान,
हमारे भारत की पहचान।
संस्कृति से संस्कृत हैं हम बस, यही हमारा कोश,
कुसुम–सुकोमल वज्र–परुष हम सुन लो फिर उद्घोष,
हमारे तृण–तृण हैं श्रीमान,
हमारे कण–कण में भगवान,हमारे भारत की पहचान ॥
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