गाय, ब्राह्मण और सनातन धर्म
जय प्रकाश कुंअरभारतवर्ष चिरकाल से ही धर्म प्रधान देश रहा है । इसे ऋषि मुनियों और साधु संतों का देश भी कहा जाता है । इस देश में सनातन धर्म के अनुसार गाय और ब्राह्मण दोनों ही पूज्य हैं । हम सब गाय को
गौमाता और ब्राह्मण को ब्राह्मण देवता कह कर पूजते हैं । इन दोनों ही का पूजन करते समय यह नहीं देखा जाता है कि इनकी उम्र क्या है , इनकी प्रजाति क्या है और इनकी गुणवत्ता क्या है । गाय चाहे देशी नस्ल की हो अथवा विदेशी नस्ल की हो , कम दुध देनेवाली हो अथवा ज्यादा दुध देनेवाली हो अथवा दुध नहीं देनेवाली हो , हमारे लिए सभी प्रकार की गायें गौमाता हैं और पूज्य हैं । अतः सनातन धर्म के अनुसार गोवंश की रक्षा करना हमारा कर्तव्य और परम धर्म है । ठीक उसी प्रकार ब्राह्मण चाहे बच्चा हो अथवा बुढ़ा हो , शिक्षित हो अथवा अशिक्षित हो , साधारण हो अथवा विद्वान हो, हमारे लिए सभी ब्राह्मण समान रूप से पूज्य हैं । यही है हमारा सनातन धर्म और हमारे धर्मग्रंथों का उपदेश ।
आज कल हमारे देश के राजनीतिक गलियारों में कुछेक राजनीतिज्ञों द्वारा सनातन धर्म और ब्राह्मण समुदाय पर राजनीतिक लाभ के लिए लगातार मौखिक हमले हो रहे हैं और इनकी आलोचना कर भारतीय जनता में एक अलोकप्रिय माहौल बनाया जा रहा है ।
जबकि सच्चाई यह है कि भारतवर्ष में सनातनी हिन्दू समाज चाहे वह साधारण आदमी हो या कोई राजनेता हो ,अपने हरेक पर्व त्योहार एवं पारिवारिक अथवा सामाजिक किसी पूजा पाठ के अवसर पर जीवन से मृत्यु पर्यन्त ब्राह्मण को निमंत्रित करते हैं और उनका पूजन कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं । ब्राह्मण को आमंत्रित करते समय यह नहीं देखा जाता है कि उनमें से कौन अनपढ़ हैं और कौन कितना बड़ा विद्वान हैं । हरेक हिन्दू परिवार को अपना एक कुल पुरोहित और कुल गुरु होता है ,जो उनके घर हर अवसर पर पूजा पाठ करता है । इसके अलावा विशेष मौकों पर हम अधिक ब्राह्मणों को आमंत्रित करते हैं ।आमंत्रित ब्राह्मण देवता अपने मे स्वयं तय कर लेते हैं कि कौन पूजा पाठ करायेगा और कौन ब्राह्मण उनका सहयोग करेगा । अभी तक यही हमारी परंपरा है ।और ऐसे ही हमारा समाज स्वीकार कर चल रहा है और पुजा पाठ तथा संस्कारी काम हो रहा है । जहां तक मेरा विश्वास है हर भारतीय हिन्दू राजनीतिज्ञ और राजनेता इस परंपरा को मान रहा है और इसी के अनुसार उनके लिए भी ब्राह्मण समाज पूज्य है । अतः किसी भी हिन्दू राजनीतिज्ञ और राजनेता के लिए यह शोभा नहीं देता है कि पूजा पाठ के लिए ब्राह्मण को अपने घर में बुलाकर उन्हें पूजें और राजनीतिक लाभ के लिए सार्वजनिक मंच से उनकी आलोचना करें ।
अतः यह अशोभनीय कार्य है और इसकी भर्त्सना की जानी चाहिए ।
श्री रामचरितमानस हम हिन्दूओं का एक धार्मिक , पौराणिक और पूज्य ग्रंथ है और उसमें ब्राह्मणों को कितना उच्च स्थान दिया गया है , इसका ख्याल उनकी आलोचना समालोचना करते समय सभी माननीयों और राजनीतिज्ञों को अवश्य रखना चाहिए ।
श्री रामचरितमानस से ली गई कुछ पंक्तियां नीचे वर्णित है जिसका अवलोकन मार्गदर्शन हेतु किया जाना चाहिए :---
श्री रामचरितमानस में स्वयं भगवान का कथन है ,
बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार ।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार ।।
एक अन्य जगह देवताओं द्वारा भगवान की स्तुति करते हुए कहा गया है कि ,
जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता ।
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिन्धुसुता प्रिय कंता ।।
एक अन्य जगह स्वयं भगवान ने अपने मुख से कहा है कि ,
मन क्रम वचन कपट तजि जो कर भूसुर सेव ।
मोहि समेत बिरंचि शिव बस ताके सब देव ।।
पुनः एक जगह कहा गया है कि ,
पुन्य एक जग महुं नहीं दूजा । मन क्रम वचन बिप्र पद पूजा ।
सानुकूल तेहि पर मुनि देवा । जो तजि कपट करइ द्विज सेवा । श्री रामचरितमानस में उद्धृत उपरोक्त पंक्तियों के आलोक में मुझे माननीयों एवं राजनीतिज्ञों से यह आग्रह है कि वे कृपया ब्राह्मणों और सनातन धर्म की आलोचना राजनीतिक लाभ के लिए सार्वजनिक मंचों से करना त्याग कर अन्य लोक लुभावन घोषणाएं कर उनका आशीर्वाद एवं समर्थन प्राप्त करने की कोशिश करें ।
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