खामोशियाँ
कभी मौन नही होतीवह संवाद करती हैं
अन्तर्मन से
करती हैं सवाल
दूसरी खामोशी से
और
जवाब भी देती हैं
मौन भाषा में
एक दूसरे को।
हाँ
कभी कभी
खामोशीयों के दरम्यां भी
संवाद हीनता आती है,
जब
अन्तर्मन की उलझन
अहंकार में डूब जाती है।
तब
मौन मुखर हो जाता है
खामोशी का दर्द
कभी नयनों से
तो कभी
खामोश लबों से
व्यक्त हो जाता है।
नयनों और लबों का
मौन संवाद
पैदा कर देता है
अक्सर
खामोशियों के अस्तित्व
का खतरा
और
बढा देता है
व्यग्रता
खामोशियों की।
जिसके कारण
खामोशियाँ
पुनः करने लगती हैं
संवाद
एक दूसरे के साथ
खामोशी से।
अ कीर्तिवर्धन
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