एकाकीपन
ऊंची-ऊंची हैं यह अट्टालिकाएं,निकलती ये सपनों की कतारें।
कहने को तो आलीशान महल,
भीतर हैं वेदनाओं के दलदल।
रहते केवल अकेले इंसान यहां,
मौजूद नहीं कोई परिवार वहां।
बड़ी-बड़ी सोचों में हैं खोए हुए,
अपनी आकांक्षाओं में क़ैद हुए।
एकांतित जीवन से हैं सब ग्रस्त,
झूठी मुस्कानें अवसाद से त्रस्त।
कौन देखे आधुनिकता में लिप्त,
अंतर्मन में उनके ये मूक संघर्ष।
इन क्लांत शरीर और अशांत मनों की,
गूंजी रही ये निःशब्द दारूण चित्कार।
कैसे दूर हो अकेलेपन का मनोविकार,
इसका इलाज केवल प्रेम एवं परिवार।
स्वरचित एवं मौलिक पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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