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क्यों रो रहे हो

क्यों रो रहे हो

डा• मेधाव्रत शर्मा, 
डी.लिट.(पूर्व यू.प्रोफेसर)
हाय,पागल प्राण!
उस देह की खातिर
एक मुट्ठी राख में
जो हो गई तब्दील
उस एक मुट्ठी राख में
संभावनाएँ हैं अनन्त
सोई हुई
क्रोड में 'फीनिक्स 'के
जो जगेगा
फिर उठेगा
और दौड़ेगा चतुर्दिक् बेतहाशा
एक मुट्ठी राख से ही तो
खड़े होते हैं असंख्य
भुवन-मण्डल
एक मुट्ठी राख में ही
लीन होने को पुनः
पितृवन संसार
नित्य क्रीडा में जहाँ संसक्त
महाकाली-महाकाल
मोह-निद्रा से उठो
कर अपावृत आवरण को
दृष्टि जिससे अवष्टम्भित
और
ईक्षण करो उस सत्य का
जो खड़ा है नग्न
"यत्र क्रीडति नित्यं वै स्वयं संसार-भैरवः। 
तत्र श्मशाने संसारे शिवः सर्वत्र दृश्यते। ।"
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